दुनिया भर में प्राचीन मिस्र बस्तियों
मिस्र प्राचीन दुनिया का सबसे प्रभावशाली, आबाद और प्रसिद्ध देश था, जिसकी पुष्टि ड्योडोरस ने अपनी पुस्तक 1 (31, 6-9) में की है,
आबादी के घनत्व के हिसाब से प्राचीन काल के सभी ज्ञात क्षेत्रों में मिस्र सबसे अधिक आबाद इलाक़ा था, और आज के ज़माने में भी इसे दूसरे पायदान पर धकेलने वाला कोई नहीं है… उनके अनुसार पुराने ज़माने में उनकी कुल आबादी 70 लाख थी और यह संख्या हमारे जमाने में भी जस की तस है।
हेरोडोटस ने पुष्टि की है कि अमासिस के शासनकाल के दौरान मिस्र में 20,000 आबाद शहर मौजूद थे। ड्योडोरस के अनुसार 18,000 बड़े गांव और कस्बे मौजूद थे, और उसका कहना था कि, टॉलेमी लैगस के दौर में उनकी संख्या 30,000 से भी ज़्यादा थी। जोसेफस ने वेस्पैसियन के शासनकाल में, नील नदी की घाटी में 75 लाख की आबादी का अनुमान लगाया था, जो अलेक्जेंड्रिया के अतिरिक्त था, जिसकी आबादी 800,000 के आसपास थी।
ऊपरी तौर पर देखने से, प्राचीन मिस्र दुनिया के बाकी हिस्सों से पृथक और अकेला दिखाई देता है, जिसे नील नदी की सँकरी घाटी की रेगिस्तानी पट्टी ने अलग-थलग कर दिया हो। फिर भी मिस्रवासी अन्य देशों के साथ लगातार संपर्क में थे। प्लूटार्क, हेरोडोटस तथा ड्योडोरस जैसे प्राचीन लेखकों ने बताया है कि किस प्रकार पूरे विश्व में प्राचीन मिस्र के शांतिपूर्ण उपनिवेश फैले हुए थे। सिसिली के ड्योडोरस, ने अपनी पुस्तक 1 (29, 5) में कहा हैः
आमतौर पर, मिस्रवासी बताते हैं कि उनके पूर्व राजाओं के उत्कर्ष तथा अत्यधिक जनसंख्या के कारण उनके पूर्वजों ने ढेर सारे उपनिवेशों को दुनिया के कई आबाद हिस्सों में भेजा था।
ड्योडोरस, ने अपने पुस्तक 1, (28, 1-4) में लिखा है कि उन्हें एशिया और यूरोप में मिस्र के कुछ शांतिपूर्ण उपनिवेशों के बारे में बताया गया थाः
… दुनिया के समस्त आबाद इलाकों में बड़ी संख्या में मिस्री उपनिवेश फैले हुए थे। उदाहरण के लिए, बेबिलोन में उपनिवेशियों का नेतृत्व बेलोस के हाथ में था, जिसे पोसायडन और लीबिया का बेटा माना जाता था…
…वे यह भी कहते हैं कि कुछ लोग इसी प्रकार दानौस के साथ मिस्र से निकले, वे यूनान के सबसे पुराने शहर आर्गोस में बसे, और साथ ही पोंटस में कोल्ची की क़ौम तथा अरब और सीरिया के बीच स्थित यहूदी, भी उनके देश के कुछ प्रवासियों द्वारा उपनिवेशों के रूप में स्थापित हुए थे…
एशिया और यूरोप में मिस्री उपनिवेशों की प्रतिष्ठा के आधार पर, उन्होंने अपने नए उपनिवेशों वाले देशों में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ड्योडोरस ने अपनी पुस्तक 1, (28,6-7) में इन नए उपनिवेशों के शासकों के रूप में मिस्री उपनिवेशियों की महत्वपूर्ण भूमिकाओं पर चर्चा की हैः
इसके अलावा वे कहते हैं, कि एथेंस के कुछ शासक मूल रूप से मिस्री थे। उदाहरण के लिए, पेटेस (जिसे इलियड 2. 552. में पेटेयस कहा गया है) जो ट्रॉय के खिलाफ युद्ध में भाग लेने वाले मेनेस्थेयस का पिता था, स्पष्ट रूप से एक मिस्री था, जिसने बाद में एथेंस की नागरिकता और बादशाहत हासिल की।
ड्योडोरस, ने अपनी पुस्तक 1 (29, 1-5) में यह भी कहा हैः
वे आगे बताते हैं, ठीक इसी तरह से, एरेकथियस भी जन्म से एक मिस्री था जो एथेंस का राजा बना …एरेकथियस, मिस्र के साथ अपने नस्लीय संबंधों के कारण वहां से अनाज की एक बड़ी खेप एथेंस लेकर आया, इससे लाभान्वित हुए लोगों ने इस एहसान के बदले उसे अपना राजा बना दिया। अपना सिंहासन सुरक्षित करने के बाद उसने एल्यूसिस में डिमीटर के दीक्षा संस्कार को संपन्न किया तथा मिस्र से अनुष्ठानों को वहाँ स्थानांतरित करके रहस्यों की स्थापना की … और एथेंसवासियों के लिए उनके बलिदान तथा प्राचीन समारोह का वैसा ही महत्व था जैसा मिस्रवासियों के लिए…
… अटिका के अधिक महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों के प्रभारी, पेस्टोफोरोई वे मिस्री पुजारी थे जो जुलूस में देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर लेकर चलते थे। वे इकलौते यूनानी थे जो इसिस की कसम खाते थे, और उनका रहन-सहन और तौर-तरीक़ा मिस्रियों से बेहद मिलता-जुलता था।
हेरोडोटस (500 ई.पू.) का कहना था, कि वे डोरियान शहर हैलिकार्नासेस से आए थे। उसने, द हिस्ट्रीज, बुक 6, (खंड 53-55) में डोरीयनों तथा मिस्र के बीच संबंधों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया हैः
(53) …यदि कोई पीढ़ी दर पीढ़ी, डोरियन के प्रमुख एक्रिसियस की बेटी दानाए की वंशावली, का पता लगाए तो वे असली मिस्री साबित होंगे।
(55) …इस बारे में बहुत कुछ कहा गया है। दूसरे विवरण दे चुके हैं कि मिस्री होने के बावजूद वे क्या-क्या उपलब्धियां हासिल करके और कैसे-कैसे डोरियन के राजा बने, इसलिए मैं उन बातों में नहीं जाऊँगा। मैं उन चीज़ों को दर्ज करूंगा जिसे दूसरों ने नहीं किया है।
हेरोडोटस, ने ऊपर (55), बताया है कि यह तथ्य उसके समय (500 ई.पू.) में आम जानकारी थी जिसका उल्लेख करना बहुत ज़रूरी नहीं था। हेरोडोटस द्वारा डोरियनों और मिस्रियों के बीच अन्य संबंधों के संदर्भ कई बार दिए गए थे, जैसे द हिस्ट्रीज, बुक 2, (खंड 91) में।
और अंत में, एक बात का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है कि, प्राचीन मिस्री अभिलेखों (साथ ही अन्य क्षेत्रों के अभिलेखों) में संसार के जगहों के ऐसे अनगिनत नाम हैं, जिन्हें हम आज नहीं पहचानते। स्थानों, जातीय समूहों और देशों के नाम बदलते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर, सिर्फ 100 साल पहले के यूरोपीय देशों के नामों को आजकल के अधिकांश यूरोपीयन नहीं पहचान सकते। अब से कुछ सदियों बाद, इनसे जुड़े अभिलेख जब अंततः गुम हो जाएंगे, तब इन देशों के नाम पूरी तरह से अनजान बन जाएंगे।
दुनिया के बहुत से जगहों पर, ऐसे साँवले/गेहुँए रंग वाले लोगों का ज़िक्र मिलता जिन्होंने संसार के बहुत सारे इलाके में ज्ञान का प्रसार किया। वे इस प्रकार वर्णित हैं:
1. विशेषताओं और मूल से ‘‘पूर्वी’’।
2. ग़ैरलड़ाकू लोग जो स्थानीय आबादी के बीच शांतिपूर्वक बस गए।
3. धातु विज्ञान में अत्यधिक उन्नत, जिन्होंने बड़ी मात्रा में धातु के उत्पादों का निर्माण किया
4. बहुत ही संगठित और प्रबंधन में बेहद प्रतिभाशाली।
5. शुष्क मौसम की खेती, सिंचाई, इत्यादि में अत्यधिक उन्नत।
6. अनुभवी निर्माता और कारीगर, जिन्होंने बड़े-बड़े पत्थरों के मक़बरों आदि का निर्माण किया।
7. जीववादी विश्वास वाले बेहद धार्मिक लोग।
उपरोक्त सारे विवरण केवल एक देश—मिस्र पर लागू हो सकते हैं। भूमध्यसागरीय बेसिन के सभी लोगों की मौखिक परंपराओं, जातीय-इतिहासों और पुरातात्विक सबूतों (प्रमुख बस्तियों, मक़बरों, खनन गतिविधियों, …) आदि को एक साथ रखें, तो हम यह देख सकते हैं कि ये सभ्य नवागंतुक केवल नील नदी की घाटी से आने वाले ही हो सकते हैं।
मिस्र से प्रवासन की घटना कई बार हुई। यह प्राचीन मिस्री घटनाओं से काफी करीब से संबंधित था। कुछ ने व्यवसायिक संपर्कों की तालाश में समृद्धि के समय यह कदम उठाया। तो अधिकतर ने अपने कठिन दौर में यह रास्ता अख़्तियार किया।
भीतरी अफ्रीका और सब-सहारन अफ्रीका की ओर होने वाले मिस्री प्रवासन के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें, मुस्तफ़ा ग़दाला द्वारा लिखित पुस्तकः एक्साइल्ड इजिप्शियनः द हर्ट ऑफ अफ्रीका
इबेरियाई प्रायद्वीप की ओर होने वाले मिस्री प्रवासन के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें, मुस्तफ़ा ग़दाला द्वारा लिखित पुस्तकः इजिप्शियन रोमनीः द एसेंस ऑफ हिस्पैनिया
[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]
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