पवित्र ज्यामिति और प्राकृतिक विज्ञान
प्राचीन मिस्रवासियों के लिए ज्यामिति, बिंदुओं, रेखाओं, सतहों तथा पिंडों के अध्ययन व उनके गुण और मापन से कहीं ज़्यादा था। प्राचीन मिस्र में ज्यामिति के सामंजस्य को संसार की मूल दैवीय योजना की सबसे ठोस अभिव्यक्ति माना जाता था—उस आध्यात्मिक योजना की जो भौतिक को निर्धारित करती है।
प्राचीन मिस्रवासियों के लिए, ज्यामिति वह माध्यम था, जिसकी सहायता से इंसान दैवीय व्यवस्था के रहस्यों को समझ सकता था। ज्यामिति प्रकृति में हर जगह मौजूद हैः इसकी व्यवस्था अणुओं से लेकर आकाशगंगाओं तक, हर चीज़ की संरचना का आधार है। ज्यामितीय स्वरूप की प्रकृति इसे कार्यशील बनाए रखती है। पवित्र ज्यामिति के सिद्धांतों का उपयोग करने वाली आकृति अपना लक्ष्य अवश्य प्राप्त करती है, अर्थात् कार्य के करने/होने को साकार करती है।
पवित्र ज्यामिति न केवल ज्यामितीय आकृतियों का अनुपात निकालने के काम आती है, बल्कि वह संपूर्ण और खंड के बीच आपसी तालमेल को भी बताती है, जैसे इंसान और उसके अंगों का सामंजस्य, पौधों और पशुओं की संरचनाएं, क्रिस्टल और प्राकृतिक वस्तुओं के स्वरूप—ये सारी की सारी ब्रह्मांडीय निरंतरता की अभिव्यक्तियां हैं।
दिव्य सामंजस्यपूर्ण अनुपात (पवित्र ज्यामिति) की कुंजी, वृद्धि की प्रगति और अनुपात के बीच संबंध है।
विकास और लयबद्ध अनुपात सृजित ब्रह्मांड का सार है। यह हमारे आसपास की प्रकृति में होता रहता है। हमारे आसपास प्रकृति इस तालमेल का पालन करती है। प्राकृतिक प्रगति एक श्रृंखला है, जिसे पश्चिम में ‘‘फाइबोनैची सीरीज’’ या भारत में ‘‘हेमचंद्र श्रेणी’’ के नाम से जाना जाता है।
चूंकि इस श्रृंखला का अस्तित्व फाइबोनैची (जन्म 1197 ई.) के पहले से था, इसलिए इसे उसके नाम से नहीं बुलाया जाना चाहिए। न तो ख़ुद फाइबोनैची ने और न ही उनके पश्चिमी टिप्पणीकारों ने कभी यह दावा किया कि यह उनकी ‘‘रचना’’ है। इसलिए चलिए हम इसे वैसे ही बुलाते हैं जैसी कि यह है—यानी हम इसे योग श्रृंखला बुलाते हैं। यह एक प्रगतिशील श्रृंखला है, जिसमें आप प्राचीन मिस्री प्रणाली के दो प्राथमिक संख्याओं यानी 2 और 3 के साथ शुरू करते हैं। फिर आप उसके योग को अगली संख्या को जोड़ सकते हैं, और इसी प्रकार आगे जोड़ते जा सकते हैं,- कोई भी संख्या अपने दो पूर्ववर्ती संख्याओं का योग होती है। अतः यह श्रृंखला कुछ इस प्रकार बनेगीः
2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610,…
यह श्रृंखला समस्त प्रकृति में दिखाई देती है। किसी सूरजमुखी के बीजों की संख्या, किसी फूल की पंखुड़ियाँ, चीड़ के शंकुओं की व्यवस्था, किसी नॉटिलस खोल का विकास, आदि-ये सभी श्रृंखला के इसी पैटर्न का पालन तो करती हैं।
इस बात के भरपूर साक्ष्य मौजूद हैं कि प्राचीन मिस्रवासियों को योग श्रृंखला का ज्ञान था। प्राचीन मिस्री इतिहास के लंबे दौर में निर्मित मंदिरों और मक़बरों की योजनाएं, दर्शाती हैं कि मंदिरों के प्रमुख भागों को उनके लंबवत अक्षों के साथ योग श्रृंखला, अर्थात् 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610… के अनुसार स्थापित किया गया है।
प्राचीन मिस्री स्मारकों के परिमाण को हाथ के प्राचीन मिस्री इकाई (1.72 फीट/2.528 मीटर) के रूप में दिखाए जाने पर, यह बात शीशे की तरह साफ़ हो जाती है कि योग श्रृंखला प्राचीन मिस्री दिमाग की उपज है। योग श्रृंखला को मिस्री गणित की अभिव्यक्ति माना जा सकता है, क्योंकि यह पूरी तरह से इसके अनुरूप है, और जिसे हर किसी ने अनिवार्य योज्य प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है।
इस बात के पक्के सबूत हैं, कि मिस्रियों को योग श्रृंखला के बारे में तब भी ज्ञान था जब 2500 ईसा पूर्व में ख़फ्र के पिरामिड (शेफरन) मंदिर (शवगृह के गलत पहचान वाले) का निर्माण हुआ था, अर्थात् फाइबोनैची से लगभग 3,700 वर्ष पहले।
मंदिर के मुख्य बिंदु (यहां दिखाए गए) योग श्रृंखला का पालन करते हैं, जिनकी कुल लंबाई, पिरामिड से मापे जाने पर 233 हाथ बैठती है, जिसमें लगातार दस श्रृंखलाएं है।
आजकल के ज्यामिति शब्द के संकीर्ण प्रयोग के अपेक्षया, हमारे आधुनिक ज्यामिति के सभी पहलु बहुत ज़माने पहले प्राचीन मिस्र में सिद्ध हो चुके थे। उनके उन्नत ज्ञान का सबूत, आमतौर पर ‘‘गणितीय’’ पपायरी के नाम से विख्यात प्राचीन मिस्री पपायरी में मिलता है। इस पपायरी के बारे में और अधिक जानकारी इसी अध्याय में आगे दी गई है।
[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]
पुस्तक सामग्री को https://egypt-tehuti.org/product/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF/
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