दोहरी निरीक्षण/प्रशासन प्रणाली

दोहरी निरीक्षण/प्रशासन प्रणाली

 

सरकार (या सही शब्दों में लोक प्रशासन) के हर स्तर पर—छोटे स्तर पर घरजमाई समुदाय से लेकर बड़े स्तर पर समूचे मिस्र में—दोहरी शासन प्रणाली थी। कई मायनों में, दोहरे शासन वाली यह प्रणाली हमारे वर्तमान समय में भी कायम है। जैसे ब्रिटेन को लें, तो वहाँ का राष्ट्राध्यक्ष ब्रिटिश सम्राट होता है, जो इंग्लैंड के चर्च का प्रधान होता है, और उसे राजगद्दी विशिष्ट वरीयता के अनुसार मिलती है। मगर, ब्रिटिश सम्राट दैनिक मामलों को नहीं संभालता है, बल्कि ऐसे मामले प्रधानमंत्री द्वारा संभाले जाते हैं, जो विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के कार्यों का संचालन/निगरानी करता है। प्रधानमंत्री सम्राट की ओर से कार्य करता है, भले ही प्रधानमंत्री (और उसके राजनैतिक दल) का चुनाव प्रजा द्वारा किया जाता है। हमें ठीक ऐसी ही दोहरी व्यवस्था उन देशों में भी देखने को मिलती है, जहाँ राजषाही नहीं है, जैसे कि जर्मनी और इस्राइल—इन देशों में राष्ट्रपति और चांसलर/प्रधानमंत्री के बीच ऐसी ही दोहरी व्यवस्था देखने को मिलती है।

इसी तरह—वैचारिक तौर पर—प्राचीन मिस्री समाज के अध्यक्ष फ़िरऔन होते थे, जो प्राकृतिक (सांसारिक) और अलौकिक (दिव्य) शक्तियों के बीच लौकिक कड़ी का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका काम शासन करना नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए विधियों और संस्कारों का निष्पादन करना था। दैनिक मामलों को संभालने के लिए फ़िरऔन ने सर्वोच्च/मुख्य पदों पर न्यायाधीश/राज्यपाल को अपना अधिकारी नियुक्त किया था, जिन्हें कम से कम पुराने साम्राज्य काल (2575-2150 ईसा पूर्व) तक राजा के बाद दूसरे नंबर पर माना जाता था। जबकि वह समूचे प्रशासन का प्रमुख होता था। आध्यात्मिक और प्रशासनिक नेतृत्व की इसी दोहरी प्रणाली के तहत प्रत्येक प्रान्त (नोम) का प्रशासन चलता था।

शासन की यह दोहरी प्रणाली, प्राचीन मिस्री ब्रह्मांडीय रूपक की शासन प्रणाली का ही प्रतिरूप थी, जिसमें ब्रह्मांड का राजा (आमेन-रा) और उसका राज्यपाल-तेहुति (थोथ) था, जो ज्ञान का नेतेर (देवता) व बुद्धिमान न्यायाधीश था। प्राचीन मिस्र में, तेहुति (थोथ) दिव्य भाषा/ध्वनि/आवाज़ का प्रतीक था। इस प्रकार, तेहुति (थोथ) एक आदर्श कार्यकारी और आधिकारिक प्रवक्ता था।

प्राचीन मिस्र के राज्यपाल को मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी जाना जाता था। राज्यपाल के लिए प्रयुक्त मिस्री शब्द 'क़ादी (क़ाज़ी)—का क्रियात्मक मूलशब्द क़दा (क़ज़ा) है, जिसका अर्थ होता है—कार्य करना, यानी ‘क़ादी’ (क़ाज़ी) का अर्थ विस्तृत अर्थों में कार्यकारी हुआ। मुख्य न्यायाधीश व राज्यपाल, कृषि, राजकोष इत्यादि जैसे विभिन्न विभागों के प्रमुखों (अधिकारी/न्यायाधीश) की अध्यक्षता करता था, जो महासभा या लोकसभा कहलाती थी।

इसी प्रकार, क्षेत्रीय और/या स्थानीय स्तर पर राज्यपाल के कार्यालय का हमेशा सर्वोच्च महत्व होता था, और उनके अधिकार क्षेत्र में भूमि प्रबंधन तथा ज़िले के आंतरिक प्रशासन से संबंधित सभी मामले आते थे। वह (और उसके सहायक अधीक्षक), भूमि के सर्वेक्षण, नहरों के आरंभ, समस्त कृषि और सामुदायिक परियोजनाओं, वाणिज्य से संबंधित मामलों, एवं समुदाय/जिला/प्रांत/देश के हितों से जुड़े अन्य सभी मामलों को नियंत्रित करते थे। भू-संपत्ति तथा अन्य आकस्मिक विवादों को कार्यकारी न्यायाधीश के समक्ष भेजा जाता था, तथा उसके न्यायाधिकरण से सामने सुलझाया जाता था।

‘‘राज्यपाल’’ मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता था, जो विधायी शाखा (श्रेष्ठों की परिषद) द्वारा स्थापित नीतियों और कानूनों को कार्यान्वित करता था।

सबसे छोटे मातृवंशीय समुदाय में एक मुखिया/राजा होता था, जो श्रेष्ठों के परिषद द्वारा शासन करता था। श्रेष्ठों की परिषद— परिवार के प्रतिनिधियों के रूप में—विधायी शाखा के समतुल्य थी। वे नीतियां बनाते और अगर ज़रूरत पड़ती तो अंतिम पंचों (न्यायाधीशों) के रूप में कार्य करते। नेता (और परिषद), दैनिक मामलों को निपटाने के लिए एक अधिकारी (राज्यपाल, न्यायाधीश) नियुक्त करता या चुनता था। उसके पास विभिन्न सामुदायिक गतिविधियों के लिए अधीक्षक होते थे। वह केवल उन मामलों को सुलझाता जो निचले स्तरों पर नहीं हल हो पाते थे।

 

[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]