अपने रास्ते जाना (मा-अत)

अपने रास्ते जाना (मा-अत)

आध्यात्मिक विकास/प्रगति के विविध पड़ावों से गुज़रने के दौरन हम सांसारिक अस्तित्व में आते हैं।

हर एक को अपना जीवन जीना चाहिए, और हम में से हर एक को माँ-एट के दिखाये, अपने - अपने रस्तों पर जाना चाहिए। प्रारम्भिक कल से लेकर समुचे मिश्री इतिहास के सभी लेखन में, माँ-आत की अवधारण मौजुद है। ये वाह अवधारण है, जिसके द्वार ना केवल मानव, बाल्कि नेतेरु (देवी-देवता) भी स्वयं को नियत्रित करते हैं। Ma-at Ko एक शब्द के माध्यम से अनुवाद करना या स्पष्ट करना आसान नहीं है। असल में, हम इसका मतलब, 'क्या होना चाहिए, या क्या ठीक है' कह सकते हैं, अर्थत ब्रह्माण्ड, नेतेरू तथा लोग-जो इसका हिसाब हैं, उच्च क्रम और संगति में हैं।

मा-अत को, कर्म की पूर्वी अवधारण और व्यावहारिक बुद्धि कि पश्चमी अवधारण के इर्द-गिर्द रख सकते हैं।

मा-अत, वो रास्ता है जिसमें गुना, लक्ष्य, और कर्तव्य शामिल होते हैं, जो आदर्श नहीं तो काम से काम सत्कार्य, सामाजिक संपर्क और व्यक्तिगत व्यवहार को परिभाषित करते हैं। संसार में, श्रद्धालूओं द्वारा, मां-अत का पालन सही कार्य और व्यक्तिगत शील के माध्यम किया जाता है।

प्राचीन मिस्री ज्ञान ने, नैतिक व्यवहार और समाज की सेवा पर बेहद जोर दिया है। संसार में, सत्य - मा-खेरू - का 'आचरण', हाय मिश्री ज्ञान साहित्य का सदा विषय रहा।

धर्म की मिस्री अवधारण को, नकारात्मक समीक्षा (अगले अध्याय में जिसकी चर्चा की गई है) के नाम से मशहूर सारांश में देखा जा सकता है। मकाबरे के पूजाघरों की दीवारों और साहित्यिक रचनाओं में धार्मिक मनुष्य, उपेक्षित आचरण, कर्तव्य और प्रतिफल आदि विचारों का अधिक विशिष्ट चित्र मिलता है, जिनहें अमतौर पर सूक्ति और उपदेशों में रचित, व्यवस्था निर्देशों का ज्ञान पथ कहा जाता है। इनमे से 30 अध्याय अमीन मोप (अमीनहोटेप III) की शिक्षाओं से सम्बधित है, जिसमें कई ऐसे ज्ञानपथ शामिल हैं, जिन्हे बाद में ओल्ड टेस्टामेंट के नीतिवचन की पुस्तक अपनाई गई।

Is Misri Path Aur Baiibal Ke Beech Kayi Maukhik Samanatayen Milati Hain, Jaise Ki Pehle Adhay Ke Prarambhik Panktiyon Mein:

बोले जेन वले शब्दों पर, कान दो, अपने मन को

सामझाने दो का प्रयोग करें. उन्हें अपने दिल में रखना हितकर है। इसके अलावा, सूक्ति और उपदेशों में रचित, व्यवस्था निर्देशों के अतिरिक्त व्यवहारिक ज्ञानपथ भी हैं, जो 'क्या करें' और 'क्या न करें', के बारे में बताते हैं। ये इंसान को दोसो को बचाना (बचाना) और सदाचार को अपनाना (पोसाना करना) दोनो की शिक्षा देते हैं।

मिश्री शिक्षाएं इस बात पर जोर देती हैं, कि व्यक्ति की समाज में साक्रिया भागीदारी होनी चाहिए। तथा दूसरों की सेवा से वे जो भी सीखें हैं, उसका इस्तमाल करें। हमें स्त्री/पुरुष की सफ़लता की असली परीक्षा, समाज में उसका व्यक्तित्व दर्शन है।

सभी व्यक्तियों के पास अपने और अपने आश्रितों का भरण-पोषण करने के लिए कोई उत्पदक कार्य अवश्य होना चाहिए। संसार से कोई सेवनिवृत्ति नहीं है, अर्थात न कोई भिक्षु, न तपस्वी। मिश्री अदारस, संसार में रहने और अध्यात्मिकता को प्राप्त करने के बीच संतुलन साधने पर ज़ोर डालता है।

(मिश्री रहस्यवाद: पथ के साधक द्वार लिखित मुस्तफ़ा गदल्ला)

 

[इसका एक अंश: मिश्र का ब्रह्मनाद विज्ञान: सजीव ब्रह्मनाद, तीसरा संस्कार द्वार लिखित मुस्तफा गदाल्ला]

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