गणित और अंकशास्त्र

गणित और अंकशास्त्र

 

प्राचीन मिस्रवासियों के लिए, 2 और 3 ब्रह्मांड की दो मूल संख्याएं हैं। सारे तथ्य बिना किसी अपवाद के प्रकृति में ध्रुवीय एवं तत्व रूप में त्रिआयामी होते हैं। इस प्रकार, केवल संख्या 2 और 3 ही मूल संख्याएं हैं, जिनसे अन्य संख्याएं उत्पन्न होती हैं।

दो की संख्या बहुलता-नारीत्व, परिवर्तनशील धारण करने की शक्ति का प्रतीक है, जबकि तीन की संख्या पुरुष का प्रतीक है। यह ब्रह्मांड का संगीत था, आदि स्त्री और पुरुष के ब्रह्मांडीय प्रतीकों ओसीरिस और इसिस के बीच यह ब्रह्मांडीय जुगलबंदी छिड़ी तथा स्वर्ग के इस विवाह से संतान होरस का जन्म हुआ। प्लूटार्क ने अपने मोरालिया के खंड 5 में प्राचीन मिस्रियों के इस ज्ञान की पुष्टि की हैः

तीन (ओसीरिस) प्रथम पूर्ण विषम संख्या है, चार एक वर्ग है जिसका पक्ष सम संख्या दो (इसिस) है, लेकिन पाँच (होरस) कुछ मायनों में अपने पिता जैसा है, और कुछ मायनों में अपनी मां के जैसा, क्योंकि यह तीन और दो से मिलकर बना है…”

दो मूल संख्याओं 2 और 3 (जिन्हें इसिस और ओसीरिस के रूप में निरूपित किया गया है) के महत्व को सिसिली के ड्योडोरस ने [पुस्तक 1, 11. 5] में स्पष्ट किया है,

‘‘ये दो नेतेरु (देवी-देवता), पूरे ब्रह्मांड को थामे रखते हैं, और नियमित करते हैं, तथा सभी को पोषण और वृद्धि, दोनों प्रदान करते हैं…’’

प्राचीन मिस्र के सजीव संसार में, संख्या को केवल मात्रा भर नहीं माना जाता था, बल्कि इसके बजाय उन्हें प्रकृति के ऊर्जावान प्रारंभिक सिद्धांतों की ठोस परिभाषाएँ माना जाता था। मिस्रवासी इन ऊर्जावान सिद्धांतों को नेतेरु (देवी-देवता) कहते थे।

मिस्रवासियों के लिए, संख्याएं केवल सम और विषम नहीं थीं। मोरालिया के खंड 5 में, प्लूटार्क, इन प्राचीन मिस्री सजीव संख्या को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से निर्दिष्ट करते हुए 3: 4: 5 त्रिकोणः का वर्णन करता हैः

लंब को पुरुष माना जा सकता है, आधार को महिला और कर्ण को दोनां के बच्चे के रूप में माना जा सकता है, और इस प्रकार ओसीरिस को उद्गम, इसिस को आधार, और  होरस को सिद्ध परिणाम के रूप में माना जा सकता है।

इन संख्याओं की जीवन शक्ति और इनका पारस्परिक संवाद बताता है कि वे किस प्रकार पुरुष और स्त्री, सक्रिय और निष्क्रिय, क्षैतिज और लंबवत, … आदि हैं। प्राचीन मिस्री परंपराओं में संख्याओं के दैवीय महत्व को गणनाकार देवी ‘‘शेशात’’ के रूप में अभिव्यक्त किया गया है। नेतेर्त (देवी) सेशात को, लेखन की देवी, लिपिक, दैवीय पुस्तकालय (अभिलेखागार) की प्रधान, निर्माताओं की देवी आदि विशेषणों से भी पुकारा जाता है।

सेशात को थोथ (तेहुति) के साथ काफी निकटता से संबद्ध और उसकी महिला समकक्ष माना जाता है।

पाइथागोरस (580-500 ईसा पूर्व) के माध्यम से संख्यात्मक प्रतीकों की यह मिस्री अवधारणा पश्चिम में लोकप्रिय हुई। यह एक ज्ञात तथ्य है कि पाइथागोरस ने छठी सदी ईसा पूर्व में लगभग 20 वर्षों तक मिस्र में अध्ययन किया था।

पाइथागोरस और उसके नजदीकी अनुयायियों ने स्वयं अपना लिखा कुछ भी नहीं छोड़ा। फिर भी, पश्चिमी विद्वान पाइथागोरस और तथाकथित पाइथोगोरियनो को एक न ख़त्म होने वाली सूची को जरिए बड़ी बड़ी उपलब्धियों का श्रेय देते हैं। पश्चिमी पंडितों ने उनके नाम एक ब्लैंक चेक ही जारी डाला।

कहा जाता है कि पाइथागोरस और उनके अनुयायी संख्यायों को दिव्य अवधारणाओं और ईश्वर की कल्पनाओं के रूप में देखते थे, जिसने संख्यात्मक प्रतिमान के अनुक्रम का पालन करते हुए अनंत विविधताओं वाला ब्रह्मांड बनाया। ठीक यही सिद्धांत, पाइथागोरस के जन्म से 13 सदी पहले, राईन्ड गणितीय पेपिरस (1848-1801 ई.पू.) के नाम से जाने वाले मिस्री पेपिरस के शीर्षक में व्यक्त किया गया है, जो वादा करता है,

प्रकृति में मौजूद हर चीज़, हर गुप्त बात, हर रहस्य को जानने का नियम है।

इसका आशय बिल्कुल स्पष्ट है-कि प्राचीन मिस्रवासी ‘‘सभी अस्तित्व’’ के आधार के रूप में संख्याओं और उनके परस्पर संबंधों (तथाकथित गणित) पर विश्वास करते थे और उसके लिए उन्होंने नियम बनाया था।

मिस्री कला और निर्माण के सभी ढांचागत तत्व (आयाम, अनुपात, संख्या, … वगैरह) मिस्र के संख्यात्मक प्रतीकवाद पर आधारित थे, जैसे मिस्र के सबसे बड़े मंदिर, अर्थात् कार्नाक मंदिर परिसर का प्राचीन मिस्री नाम अपेत-सुत था जिसका मतलब होता है, स्थानों का गणक। मंदिर का नाम ही सब कुछ बोल देता है। यह मंदिर 1971 ईसा पूर्व मध्य साम्राज्य में शुरू हुआ था और अगले 1,500 साल तक इसमें वृद्धि होती रही।   (संख्या और उसके महत्व के बारे में और अधिक जानकारी के लिए मुस्तफ़ा ग़दाला द्वारा लिखित पुस्तकें मिस्र का ब्रह्मांड विज्ञानः सजीव ब्रह्मांड और द एनसियंट इजिप्शियन मेटाफिज़िकल आर्किटेक्चर देखें।)

वर्तमान में ‘‘गणित’’ के सीमित इस्तेमाल को देखा जाए तो, प्राचीन मिस्री स्मारकों की श्रेष्ठता उनके ज्ञान की श्रेष्ठता को प्रमाणित करती है। आरंभ के लिए उनके पास 1 के संकेत वाली दशमलव की प्रणाली थी, इसी प्रकार 10, 100, 1,000 के आदि थे। प्रथम राजवंश (2575 ईसा पूर्व) की शुरुआत के सबूत दर्शाते हैं, कि संकेत पद्धति में 1,000,000 तक के लिए चिन्ह ज्ञात थे। वे जोड़ने और घटाने का इस्तेमाल करते थे। सरलतम मामलों छोड़ कर जिसमें किसी संख्या को दोगुना या दस गुणा किया जाता था, गुणा करने में दोगुना करने और जोड़ने की प्रक्रिया अपनाई जाती थी, यह ठीक वैसे ही है जैसे की कंप्यूटर की प्रक्रिया होती है। हमारी गुणन तालिकाएं कुछ और नहीं, बल्कि पूरी तरह से याद रखने पर आधारित होती हैं, जिसे किसी भी तरह से मानवीय उपलब्धि नहीं माना जा सकता है। कंप्यूटर की प्रक्रिया अधिक आसान, अधिक सटीक और अधिक तेज है, जैसा कि हम सभी जानते हैं।

ये गुरु लोग प्राचीन मिस्र के ढेर सारी रचनाओं में सन्निहित ज्ञान को अनदेखा करते हैं। वे केवल मध्य साम्राज्य काल से प्राप्त पेपिरस तथा उसी तरह के मिलते-जुलते कुछ अन्य प्राचीन मिस्री अंशों को ही उद्धृत करना चाहते हैं। गणित का अध्ययन, ‘‘गणितीय’’ पपायरी को लिखे जाने से बहुत पहले शुरू हो चुका था। ये प्राप्त पपायरी आधुनिक अर्थों वाले गणितीय लेखों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, कहने का मतलब है कि उनमें विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करने वाले नियमों की लंबी-चौड़ी श्रृंखलाएं नहीं लिखी हुई हैं, बल्कि इनमें केवल तालिकाओं की सहायक सारणियों और उदाहरणों की श्रृंखलाएं दी गईं हैं। सबसे अधिक संदर्भित की जाने वाली चार पपायरी इस प्रकार हैं:

1. राइंड ‘‘गणितीय’’ पपाइरस (ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित) बारहवें राजवंश के राजा नेमारा (1849-1801 ईसा पूर्व), के दौर के एक पुराने दस्तावेज़ की प्रति है। इसमें कई उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें मिस्री पुरातत्वशास्त्रियों ने क्रमांक (1-84) प्रदान किए हैं।

2. मास्को ‘‘गणितीय’’ पेपिरस (मास्को के ललित कला संग्रहालय में संरक्षित) भी बारहवें राजवंश काल का ही है। इसमें कई उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें मिस्री पुरातत्वशास्त्रियों ने क्रमांक (1-19) प्रदान किए हैं। चारों उदाहरण ज्यामितीय हैं।

3. काहुन के टुकड़े।

4. बर्लिन पेपिरस 6619, जिसमें क्रमांक 1-4 के अंतर्गत चार टुकड़ों की प्रतिलिपि हैं।

राइंड ‘‘गणितीय’’ पेपिरस की सामग्री संक्षेप में इस प्रकार हैः

  • अंकगणितीय

– विभिन्न संख्याओं का भाग
– भिन्न अंको का गुणा
– प्रथम घात के समीकरणों के हल
– असमान अनुपात वाले पदों का विभाजन

  • मापन

– बेलनाकार पात्रों के आयतन तथा घनीय अवयव तथा आयताकार के समांतर फलक

  • इनके क्षेत्रफलः

– चतुर्भुज
– वृत्त
– त्रिकोण
– संक्षिप्त त्रिकोण
– विषम चतुर्भुज

  • किसी पिरामिड और किसी शंकु के ढलान का कोण
  • विविध समस्याएं:

– समांतर श्रेणी में अंशों में विभाजन
– ज्यामितीय श्रेणी

अन्य पपायरी से ज्ञात अन्य गणितीय प्रक्रियाएं:

  • सामान्य भिन्न में शामिल राशियों का वर्ग और वर्ग मूल (बर्लिन 6619)।
  • द्विघातीय समीकरणों के हल (बर्लिन पेपिरस 6619)।
  • यहाँ ग़ौर करने वाली बात है कि राइंड पपाइरस से हमें पता चलता है कि पिरामिड की ढलान की गणना (राइंड संख्या 56-60) में उसी चतुष्कोणीय त्रिभुज के सिद्धांतों का पालन किया गया है, जिसे पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है। यह मिस्री पेपिरस, पाइथागोरस के इस धरती पर आने से हजारों साल पहले के हैं।

यह प्रमेय हमें बताता है कि किसी समकोण त्रिभुज के कर्ण का वर्ग अन्य दो भुजाओं के वर्गों के योग के बराबर होता है। प्लूटार्क ने समकोण त्रिभुज के (3: 4: 5) तीनों पक्षों के बीच के संबंधों को बताया था, जिसे वह (अपने समय के अन्य सभी लोगों की तरह) ‘‘ओसीरिस’’ त्रिभुज कहता था।

 

[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ] 

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