निर्माण प्रक्रिया का अंक विज्ञान

निर्माण प्रक्रिया का अंक विज्ञान

 

1.सबकुछ संख्या है—संख्यात्मक रहस्यवाद

प्राचीन मिस्रवासियों के पास, वास्तविकता को देखने के लिए एक वैज्ञानिक और जैविक प्रणाली थी। जबकि आज के आधुनिक विज्ञान, में सबकुछ मृत (निर्जीव) माना जाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के सांख्यिकीय विश्लेषण के दौरान हमारे आधुनिक भौतिक सूत्र इस महत्वपूर्ण चीज़ को लगभग हमेशा दरकिनार कर देते हैं। बलदी और प्राचीन मिस्रवासियों के लिए, ब्रह्मांड—समूचे और आंशिक तौर पर—सजीव है।

प्राचीन मिस्र के सजीव संसार में, संख्या को केवल गिनती नहीं माना जाता था, बल्कि इसके बजाय उन्हें प्रकृति के ऊर्जावान निर्माणात्मक तत्वों का ठोस प्रतिबिंब माना जाता था। मिस्रवासी इन ऊर्जावान तत्वों को नेतेरु (देवी-देवता) कहते थे।

मिस्रवासियों के लिए, संख्याएं केवल सम और विषम नहीं थीं, बल्कि वे स्त्री और पुरुष भी हुआ करती थीं। ब्रह्मांड का हर अंश स्त्री या पुरुष है/था। कोई भी (चीज़) तटस्थ नहीं है। अंग्रेजी में जहां कोई भी चीज़ ही, शी या इट होती है, वहीं मिस्र में इसके विपरीत, कोई भी चीज़ केवल ही या शी होती थी।

मिस्रवासियों ने संख्यात्मक रहस्यवाद के अपने ज्ञान को अपने जीवन के सभी पहलुओं में अभिव्यक्त किया था। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि मिस्रियों के पास यह ज्ञान प्रधान था। इसके कुछ उदाहरण निम्न हैं:

1 – प्राचीन मिस्र की सजीव संख्या की अवधारणा को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से निर्दिष्ट करते हुए, प्लूटार्क अपने मोरालिया के खंड 5  में, 3: 4: 5 के अनुपात वाले त्रिकोण का वर्णन करते हैं:

लंब को पुरुष, तथा आधार को महिला माना जा सकता है, और कर्ण को इन दोनो के बच्चे के रूप में मान सकते हैं, और इस प्रकार ओसिरिस को उद्गम, इसिस को आधार, और  होरस को सिद्ध परिणाम के रूप में माना जा सकता है। तीन प्रथम पूर्ण विषम संख्या है, चार एक वर्ग है, दो की सम संख्या जिसका मूल है, लेकिन पाँच कुछ मायनों में इसके पिता जैसा है, और कुछ मायनों में इसके मां के जैसा, क्योंकि यह तीन और दो से मिलकर बनता है। और अंग्रेजी शब्द पैंटा (सभी), पेंटे (पाँच) का व्युत्पन्न है, और वे इस गिनती को पाँचों द्वारा संख्यांकनकहते थे।

पाँच अपना वर्ग बनाता है।

 

इन संख्याओं की जीवन शक्ति और इनका पारस्परिक संवाद बताता है कि वे किस प्रकार पुरुष और स्त्री, सक्रिय और निष्क्रिय, क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, … आदि हैं।

2 – प्लूटार्क ने जब लिखा कि, तीन प्रथम पूर्ण विषम संख्या है, तो इसका मतलब है कि मिस्रवासियों के लिए, एक (विषम) संख्या नहीं थी। मिस्रवासियों के लिए, एक कोई संख्या ही नहीं, बल्कि संख्या के अंतर्निहित मूल तत्व का सार था, जिनसे सभी अन्य संख्याएं बनती थीं। ‘एक’ अध्रुवीकृत ऊर्जा के रूप में वह एकात्मकता का प्रतिनिधित्व करता है। एक न तो सम है और न ही विषम, बल्कि वह दोनों है, क्योंकि जब इसे किसी विषम संख्या में जोड़ते हैं तो सम बन जाता है, और इसी प्रकार जब इसे किसी सम संख्या में जोड़ा जाता है तो विषम बन जाता है। इस प्रकार यह सम और विषम के विपरीत को आपस में मिलता है, तथा ब्रह्मांड के अन्य सभी विपरीतों को भी आपस में मिलता है। एकात्मकता एक आदर्श, अनन्त, अविभेदित चेतना है।

3 – राईन्ड (तथाकथित ‘गणितीय’) पेपिरस (1848-1801 ई.पू.) के रूप में जाने जाने वाले प्राचीन मिस्री पेपिरस का शीर्षक कहता है,

प्रकृति में मौजूद हर चीज, हर गुप्त बात, हर रहस्य को जानने का नियम।

इसका आशय बिल्कुल स्पष्ट है—कि प्राचीन मिस्रवासी  सभी अस्तित्व के आधार के रूप में संख्याओं तथा उनके परस्पर संबंधों (तथाकथित गणित) पर विश्वास करते थे और उसके लिए उन्होंने नियम बनाया था।

4 –  गणना की प्राचीन मिस्री पद्धति का आध्यात्मिक और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ सीधा संबंध था। यहां तक कि मिस्री पपायरी में इस्तेमाल की गई भाषा भी सजीव संबंधों की जीवन शक्ति की इस भावना को बढ़ावा देने का कार्य करती है।

राईन्ड (तथाकथित ‘गणितीय’) पेपिरस  के रूप में जाने जाने वाले प्राचीन मिस्री पेपिरस के 38 नंबर वाले आइटम के उदाहरण में हम यह देखते हैं, जो कहता है,

मैं तीन बार हेकट (एक पैमाना, मात्रा की इकाई) में जाता हूँ, मेरा सातवाँ मुझमें जोड़ दिया जाता है, और मैं पूरी तरह से संतुष्ट होकर लौटता हूँ।

5 – लीडेन पेपिरस जे350 का प्रसिद्ध प्राचीन मिस्री भजन इस बात की पुष्टि करता है कि  कम से कम पुराने राजवंश (2575-2150 ई.पू.) के समय से मिस्र में संख्यात्मक प्रतीकों का उपयोग होने लगा था। लीडेन पेपिरस में सृष्टि के प्राचीन आख्यान के तात्विक पहलुओं का वर्णन करने वाली विस्तारित रचनाएं हैं। पेपिरस की गणना की प्रणाली, सृष्टि के तत्वों/पक्षों की पहचान करती है, तथा प्रत्येक इसके प्रतीकात्मक संख्या के साथ मेल खाती है।

इस मिस्री पेपिरस में 1 से 9 की संख्या तक 27 पद हैं, उसके बाद 10 से 90 तक दहाई में पद हैं, फिर 100 से 900 तक पद सैकड़े में हैं, जिनमें से अब केवल 21 बचे हैं। प्रत्येक का पहला शब्द संबंधित संख्या के लिए एक प्रकार का यमक है।

लीडेन पेपिरस के कुछ भागों की चर्चा अगले अध्यायों में, संख्या रहस्यवाद/मूल्यांकन के साथ संयोजन के रूप में की जाएगी। हालांकि इसका पूरा विश्लेषण मुस्तफा गदाला द्वारा लिखित इजिप्शियन अल्फाबेटिकल लेटर्स आफ क्रिएशन साइकिल  मे मिलेगा।

6 – मिस्र के सबसे बड़े मंदिर, अर्थात् कारनाक मंदिर परिसर का प्राचीन मिस्री नाम अपेतसुत था जिसका मतलब होता है, स्थानों का गणक। मंदिर का नाम ही सब कुछ बता देता है। यह मंदिर 1971 ई.पू. मध्य राजवंश में शुरू हुआ था और अगले 1,500 साल तक इसमें वृद्धि होती रही। इस मंदिर की डिजाइन और गणना, सृष्टि के संख्यात्मक कोड के अनुरूप है।

मिस्र में शिक्षित पाइथागोरस (580–500 ई.पू.) के माध्यम से संख्यात्मक प्रतीकों की यह मिस्री अवधारणा पश्चिम में लोकप्रिय हुई। यह एक ज्ञात तथ्य है कि पाइथागोरस ने लगभग 20 वर्षों तक मिस्र में अध्ययन किया।

पाइथागोरस और उसके निकट अनुयायियों ने स्वयं अपना लिखा कुछ भी अपने पीछे नहीं छोड़ा।

फिर भी, पश्चिमी विद्वान पाइथागोरस और तथाकथित पाइथोगोरियनो  को एक न ख़त्म होने वाली सूची को जरिए बड़ी-बड़ी उपलब्धियों का श्रेय देते आए हैं। पश्चिमी पंडितों ने तो उनके नाम पर एक ब्लैंक चेक ही जारी डाला है।

कहा जाता है कि पाइथागोरस और उनके अनुयायी संख्यायों को दिव्य अवधारणाओं और ईश्वर की कल्पनाओं के रूप में देखते थे, जिसने संख्यात्मक प्रतिमान के अनुक्रम का पालन करते हुए अनंत विविधताओं वाला ब्रह्मांड बनाया।

ठीक यही सिद्धांत, पाइथागोरस के जन्म से 13 सदी पहले, मिस्र के राईन्ड पेपिरस के शीर्षक में व्यक्त किया गया है, जिसका वचन है,

प्रकृति में मौजूद हर चीज, हर गुप्त बात, हर रहस्य को जानने का नियम।

आगे के अध्याय में कुछ संख्याओं और उनके प्रतीकात्मक महत्व के बारे में संक्षेप में वर्णन किया जाएगा।

 

2. प्राकृतिक प्रगति- सृष्टि के चक्र का क्रमबद्ध अनुक्रम

सृजन, आदिकाल के सभी कोलाहल (अविभेदित ऊर्जा/तत्व और चेतना) की छँटाई (क्रमबद्ध करना/परिभाषा देना) है।  सृष्टि से संबंधित प्राचीन मिस्र के सभी शास्त्र इसे अच्छी तरह से परिभाषित तथा स्पष्ट रूप से सीमांकित चरणों में प्रदर्शित करते हैं। मिस्रवासियों द्वारा, नू/नाई/नून की अवस्था यानी— न्यूट्रॅान सूप से जगने वाले सृष्टि के इस चरण को अतम/अतुम कहा गया।

प्राचीन मिस्री लेख, हमें हमेशा यह बताते हैं, कि किस प्रकार एक अवस्था, दूसरी अवस्था के रूप में विकसित होती चली जाती है। और हमने हमेशा यही पाया कि कोई भी दो लगातार अवस्थाएं एक दूसरे छवियाँ होती हैं। न केवल यह वैज्ञानिक दृष्टि से सही है, बल्कि क्रमबद्ध, प्राकृतिक, और काव्यात्मक भी है। मिस्रवासी, इन वैज्ञानिक और दार्शनिक विषयों का काव्यात्मक रूप में लेखन करने के लिए प्रसिद्ध थे।

सृष्टिकर्ता ने प्राकृतिक चीजों को क्रमबद्ध रूप में स्थापित किया, और उन्हें संख्या की सहायता से व्यवस्थित किया। संख्या अपनेआप में न तो मूर्त हैं और न ही अमूर्त। संख्याएं उन कार्यों और तत्वों के नाम हैं जिन से यह ब्रह्मांड बना तथा उसका पालन हो रहा है।

 

3. सार्वभौमिक संख्या दो—आईसिस, स्त्री मूल तत्व

हमने देखा है कि सृजन पूर्व के शून्यता वाले कोलाहल के दौरनून से, कैसे संपूर्णता वाले अतम के रूप में एक व्यवस्थित सृष्टि का आर्विभाव हुआ।

हमने यह भी देखा है कि कैसे जीवन की एक अवस्था से जीवन की अगली अवस्था प्रकट होती है या अगली अवस्था के रूप में विकसित होती है, और कैसे हर दो नजदीकी चरण एक-दूसरे की छवियाँ होतीं हैं। जैसे 0 और 10 की संख्या, कुछ भी नहीं या नहीं के बराबर है, और 1 का मतलब सर्वस्व है, वैसे ही नून और अतम एक-दूसरे की छवियाँ हैं।

परमात्मा (उस एक) के एकात्मकता के प्रकाश से उत्पन्न पहली चीज थी, सक्रिय कारण का आवेग, जिसकी पुनरावृत्ति से दो उदय हुए।

यह दिव्य सक्रिय कारण विचार वह पहली ‘चीज़’ थी जिसका अस्तित्व, प्रथमअतम के कार्य, वंश और छवि के रूप में अग्रसर हो सकता था। गर्भ धारण करने की क्षमता मानसिक और भौतिक दोनों रूपों मेंको स्वाभाविक रूप से अतम की एकात्मकता के स्त्री पक्ष द्वारा नारी तत्वइसिसके रूप में निरूपित किया गया। प्लूटार्क के लेखन में स्पष्ट रूप से इस बात की पुष्टि की गई है। वह अपने मोरालिया के खंड 5 में लिखते हैं,

“…, कारण के आवेग की वजह से। प्रत्येक आकारों और स्वरूपों के प्रति ग्रहणशील बन कर, इसिस ने अपनेआप को भिन्नभिन्न चीजों में ढाल दिया।

‘यह इसिस की सत्ता का दिव्य-मन या दिव्य-बुद्धि, या दिव्य-बौद्धिक-विधान था जिससे, अनेकता या जटिलता, या बहुलता का प्रारंभ हुआ।

जगत के स्वामी —परमात्मा— तथा जगत जननी के बीच संबंधों का सर्वश्रेष्ठ रूप में संगीत की शब्दावली में वर्णन किया गया है। अतम —परमात्मा— तथा उनके स्त्री रूप (इसिस) के बीच का रिश्ता वैसे ही है, जैसे सुर की ध्वनि तथा उसके सप्तक के स्वर के बीच का रिश्ता। तार की लंबाई को एकता मानें। तार को छेडे़ं: तो एक ध्वनि उत्पन्न होती है। अब तार के मध्यबिंदु से उस तार को रोक दें तथा फिर उसे छेड़ें। अब पूरे तार के मुकाबले इस तार से उत्पन्न कंपन की आवृत्ति दोगुनी हो जाती है, तथा इसका इसका सुर एक सप्तक ऊँचा हो जाता है। तार की लंबाई को दो से विभाजित किया गया तथा प्रति सेकंड कंपन को दो से गुणा कर दिया गयाः अब आधा 1: 2) अपनी विपरीत छवि (2:1), 2/1 को निर्मित करता है। अतम और इसिस इसी लयबद्ध संबंध का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसिस की संख्या दो है, जो सभी अस्तित्वों के आधार का प्रतिनिधित्व करने वाली क्षैतिजता, नारी चंचलता, बहुलता एवं धारण करने की शक्ति का प्रतीक है।

प्राचीन मिस्री सोच के अनुसार दो की संख्या के रूप में इसिस प्रथम तत्व—अलौकिक बुद्धि की छवि है।

बुद्धि का परमात्मा अतम के साथ संबंध वैसे ही है, जैसे सूर्य के साथ सूर्य के प्रकाश का संबंध है। प्राचीन मिस्री लेख इसिस का वर्णन अलौकिक सूर्य के प्रकाश के रूप में करते हैं, और इसलिए उसे निम्नलिखित नामों से पुकारते हैं:

जगत के स्वामी की पुत्री।
महिला रे ।
रे के साथ स्वर्ग में प्रकाश प्रदान करने वाली।

इस प्रकार इसिस परमात्मा से उत्सर्जित ऊर्जा है। सार्वभौमिक नारी तत्व रूप में, वह केवल ब्रह्मांड को गर्भ में धारण कर सकती है और उसे जन्म दे सकती है।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, इसिस ब्रह्मांडीय रचनात्मक प्रवाह की वह छवि है—जिसे रे कहते हैं। इसीलिए प्राचीन मिस्री लेख रे का वर्णन करते हुए कहते हैं:

तेरी माया, इसिस की काया

इसका मतलब है कि, रचनात्मक ऊर्जा के रूप में, रे ही अलौकिक नारी तत्व इसिस के विभिन्न स्वरूपों में भी प्रकट होता है। इसिलिए इसिस को निम्नलिखित नामों से बुलाया जाता हैः

महिला रे।
समय के आरंभ की नारी।
-सभी अस्तित्वों का मूलरूप।
-महानतम नेतेरु- (अर्थात दिव्य शक्तियाँ)।
-सभी  नेतेरु की रानी।

प्राचीन मिस्री ग्रंथों में इसिस को मातृ-देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है।

हमारी देवी माता—इसिस कितना प्यार करने वाली हैं। वह —नारी तत्व—सृजित जगत का आव्यूह है। आव्यूह के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द मैट्रिक्स एक मातृत्व वाला शब्द है, मैटर-एक्स।

बौद्धिक स्तर पर पहला विचार, एक व्यवस्थित योजना की रूपरेखा बनाना होता है। प्राचीन मिस्रवासियों ने, क्रमबद्धता और लयबद्धता का प्रतिनिधित्व करने वाली मात के रूप में, सृजन प्रक्रिया के क्रमबद्ध और लयबद्ध प्रकृति पर ज़ोर दिया है। मात, नारी तत्व—इसिस की अभिव्यक्तियों में से एक है।

प्राचीनमिस्रीपेपिरस, जिसेब्रेमनर-राईन्डपेपिरसकेनामसेजानाजाताहै, हमेंइसयोजनाकेबारेमेंबतातीहै।

मैंने अपने दिल में कल्पना की, तब बच्चों के रूप में और फिर उनके बच्चों के रूप में अलौकिक प्राणियों के ढेर सारे स्वरूप अस्तित्व में आए।

एक से अनेक (दिव्य जीव) उत्पन्न करने की अवधारणा की कल्पना, सृष्टि का पहला कदम था।

मातृ-देवी इसिस ने अपने प्रेम से परिपूर्ण हृदय में योजना—अध्यात्मिक या बौद्धिक रूप में—की कल्पना की। यह भावपूर्ण और काव्यात्मक दोनों हैं, क्योंकि हृदय को बौद्धिक विचारों, चेतना, और नैतिक साहस का प्रतीक माना जाता है/था। इस प्रकार इसिस को मज़बूत दिल वाला भी माना जाता है।

जगत के गर्भ के रूप में, देवी माँ इसिस कितनी भावपूर्ण हैं, जिन्होंने सृजन के योजना की कल्पना की फिर उसके अंशों को जन्म दिया—अपने बच्चों और उनके बच्चों के रूप में।

प्राचीन मिस्री लेख सृष्टि के क्रमबद्ध अनुक्रम पर बल देते हैं, जो मूल रूप से, अनिवार्य लालसा या स्रोत की ओर प्रत्यावर्तन के साथ अनिवार्य निर्गमन और यात्रा करने, या आलोकित होने की प्रणाली है। अस्तित्व के सभी रूप और चरण, दिव्यता से प्रवाहित होते हैं तथा वापस वहीं लौटने और रहने के लिए प्रयास करते हैं।

 

4. सार्वभौमिक संख्या तीन—ओसिरिस, पुरुष तत्व

अब दिव्य गर्भ में सृष्टि की योजना की कल्पना होने के बाद, इसे जीवन प्रदान करना इस दिशा में अगला तार्किक चरण है। इसलिए अलौकिक विचार—इसिस, अपनी सोच को साकार करने के लिए एक उपयुक्त शक्ति को उत्पन्न करती है। सबकुछ की आत्मा या  ब्रह्मांड की आत्मा ने जीवन उत्पन्न करने या सृजन योजना को सजीव करने का कार्य किया। प्राचीन मिस्र में ब्रह्मांड की आत्मा को ओसिरिस के रूप में दर्शाया गया—जो सृष्टि के अनुक्रम में तीसरे नंबर पर है, तथा संख्या 3 द्वारा उसे निरूपित किया गया है। ओसिरिस, अनन्त उद्गम और दूसरे सारत्व यानी सृष्टि के बौद्धिक-तत्व की छवि है।

सृष्टि की प्रत्येक अवस्था में अपनेआप की छवि पैदा करने की प्रवृति होती है, यह अगले सर्वोच्च की ओर भी प्रवृत होती है, जिसकी वह स्वयं अपनेआप में एक छाया या निम्न अभिव्यक्ति होती है- जैसे इसिस प्रथम तत्व की एक छवि है, ठीक उसी तरह ओसिरिस उसकी परछाई है। कितनी ज्ञान से भरी बातें हैं!

सृष्टि के क्रमबद्ध अनुक्रम में, यह नारी तत्व इसिस थी जिसने योजना की कल्पना करने के बाद उसे जीवंत किया। इसिलिए इसिस को इस प्रकार पुकारा गया हैः

– इसिस, जीवनदायिनी है!
– इसिस, जीवन की नारी है!
– इसिस, जीवनदात्री है!
– इसिस, नेतेरु निवासिनी है!

 

5. सार्वभौमिक त्रिमूर्ति और द्वैत

जैसा कि हमने देखा है, किसी चीज को उत्पन्न करने और जीवंत करने में तीन घटक शामिल होते हैं। इस प्रकार संतति के आदिप्ररूप में सृष्टिकर्ता त्रिमूर्ति के तीन तत्व शामिल होते हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैः

जिसमें पहला है, परमात्मा या प्रथम अस्तित्व—जिसे मिस्रवासियों द्वारा अतम कहा गया।

परमात्मा—वह एक जो सर्वस्व है।

इसमें दूसरा स्त्री तत्व है, जिसे इसिस कहा जाता है, जो एक अलौकिक मन है, या प्रथम विचारक और विचार है, जो आध्यात्मिक और भौतिक संकल्पना का एक स्थान है—एक गर्भ है, एक कक्ष है, समूचा ब्रह्मांड है।

इसमें कड़ी में तीसरा है, ओसिरिस के रूप में जाना जाने वाला सजीव, जीवंत, गतिशील, ऊर्जावान, पुरुष तत्व, जिसे ब्रह्मांड के प्राण के रूप में जाना जाता है।

प्राचीन मिसवासियों ने सृजन की प्रक्रिया में त्रिमूर्ति के महत्व को स्वीकार किया था। जैसे कि, प्राचीन मिस्री लेख त्रिमूर्ति को इकाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं, तथा एकवचन के सर्वनाम द्वारा व्यक्त करते हैं—वह तीन है, जो कि दो है, जो कि एक है।

त्रय देवत्व है, और परमात्मा है। यह देवत्व के निर्गामी ऊर्जा की अभिव्यक्ति है। ब्रेमनरराईन्ड पेपिरस के रूप में प्रसिद्ध प्राचीन मिस्री लेख में इसे बड़े ही भावपूर्णता तरीके से व्यक्त किया गया हैः

मैं जिनका अग्रवर्ती था, उन दो अग्रवर्तियों का मैंने सृजन किया,
मुझे उनपर प्राथमिकता थी, जिन दो अग्रवर्तियों का मैंने सृजन किया,
मेरा नाम उनसे अग्रवर्ती था
मैंने उनसे उन्हें अग्रवर्तियों बनाया, जिन दो अग्रवर्तियों का….

मिस्री लेख हमें वह एकात्मकता दिखाते हैं, जिसमें स्व की चेतना जग रही है, और जो ध्रुवीकृत ऊर्जा के रूप में: दो नए तत्वों सृजन कर रहा है, जिनमें से प्रत्येक एक दूसरे की प्रकृति को साझा करते हैं। दूसरे शब्दों में, स्त्री तत्व तथा पुरुष तत्व दोनों एकदूसरे को साझा करते हैं।

बौद्धिक स्तर पर, नारी तत्व निष्क्रिय और सक्रिय दोनों है, इसिस निष्क्रिय अवस्था में योजना की संकल्पना करती है, और इसके बाद उस योजना को जीवन प्रदान करती है, इस प्रकार वह निष्क्रियता के विस्तार के रूप में अपनी सक्रियता प्रदर्शित करती है, यानी बुद्धि और जगत की आत्मा, सक्रिय और निष्क्रिय बुद्धि के संबंध से काम करती है।

बुद्धि हमेशा जस की तस, एक समान गतिहीन गतिविधि में लीन रहती है। यह एक स्त्री गुण है। इसकी ओर और इसके चारों ओर गति आत्मा का कार्य है, जो बुद्धि से आत्मा की ओर अग्रसर होती है, और आत्मा को बौद्धिक बनाती है, वह बुद्धि और आत्मा के बीच किसी और प्रकृति को उत्पन्न नहीं करती है।

और आत्मा के स्तर पर, इसिस निष्क्रिय आत्मा है और ओसिरिस सक्रिय आत्मा।

हम बार-बार यह देखते हैं, कि सृष्टि का अनुक्रम प्राकृतिक प्रगति के चरण, और साथ ही साथ निम्न चरण की छवि—और उसके प्रतिलोम, पर आधारित होता है। निष्क्रिय-सक्रिय से सक्रिय-निष्क्रिय होना, (कहें तो) सृष्टि की श्रृंखलित प्रतिक्रिया है।

‘शाश्वतता’, के विपरीत समय को आत्मा के ‘जीवन’ के रूप में दर्शाया गया है, जो बुद्धि के अस्तित्व की विधि है। हालांकि, आत्मा एक अस्तित्व है, जिसका विस्तार वास्तविकता के विभिन्न स्तरों तक होता है, और हम उसे कभी उच्चतम तो कभी निम्नतम स्तर पर पाते हैं, आत्मा का बुद्धि को काफी हद तक आत्मसात कर लेती है।

आत्मा के साथ बुद्धि का संबंध वैसे ही है, जैसे चंद्रमा के प्रकाश का संबंध सूर्य के प्रकाश के साथ है। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश से आलोकित चाँद का प्रकाश सूर्य के प्रकाश की नकल है, ठीक उसी प्रकार जब आत्मा बुद्धि के प्रवाह को आत्मसात करती है, तब उसके गुण श्रेष्ठ हो जाते हैं, तथा उसका कृत्य बुद्धि के कृत्य की नकल बन जाता है। जब उसके गुण श्रेष्ठ हो जाते हैं, तो वह अपने सारत्व या स्व तथा अपने तत्व की वास्तविकता को जान लेता है।

दिव्य मन और दिव्य आत्मा की संयुक्त शक्ति प्राकृतिक संसार के सृजन को संभव बनाती है। दिव्य-बौद्धिक-तत्व के रूप में इसिस के दो कार्य हैं—ऊपर की ओर एकात्म का चिंतन तथा नीचे की ओर सभी आत्मा का ‘सृजन’। ठीक इसी तरह, सभी आत्मा के दो कार्य होते हैं: वह एकबार बौद्धिक तत्व का चिंतन करती है और अपने परिपूर्ण स्व की उदारता स्वरूप प्रकृति-सदृश तथा उत्पादक आत्मा को ‘उत्पन्न’ करती है, जिसका कार्य, दिव्य विचारों के अनुरूप यानी जैसी कल्पना दिव्य मन ने की है, ठीक उसी जैसे निम्न स्तर वाले भौतिक जगत को उत्पन्न करना या आकार देना है। सभी-आत्मा गति तथा साथ ही साथ स्वरूप, या पदार्थ, या इंद्रियानुभूत ब्रह्मांड का चलता फिरता कारण है, जो आत्मा का कृत्य और प्रसर्जन, छवि तथा ‘छाया’ है।

स्त्री ऊर्जा तथा पुरुष ऊर्जा की संयुक्त शक्तियों के साथ, सृजन योजना जीवंत हो सकती है।

 

6. सार्वभौमिक संख्या पाँच—होरस, एक तथ्य

दो की संख्या, बहुलता, परिवर्तनशीलता, धारण क्षमता जैसी स्त्री-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि तीन की संख्या पुरुष का प्रतीक है। यह ब्रह्मांड का संगीत था—आदि स्त्री और पुरुष के ब्रह्मांडीय प्रतीकों ओसिरिस और इसिस के बीच यह ब्रह्मांडीय जुगलबंदी छिड़ी तथा स्वर्ग के इस विवाह से संतान होरस (संख्या 5) का जन्म हुआ।

सारे तथ्य बिना किसी अपवाद के प्रकृति में ध्रुवीय एवं तत्व रूप में त्रिआयामी होते हैं। इसलिए, पाँच प्रकट ब्रह्मांड को समझने की कुंजी है, जिसे प्लूटार्क ने मिस्री संदर्भ में इस प्रकार कहा है,

और पैंटा (सभी), पेंटे (पाँच) का व्युत्पन्न है, …

प्राचीन मिस्र में, संख्या पाँच का महत्व और कार्य का संकेत उसको लिखे जाने के ढंग से मिलता है। प्राचीन मिस्र में संख्या पाँच को तीन III के ऊपर दो II के रूप में, (या कभी-कभी पाँच नोंक वाले सितारे के रूप में) लिखा जाता था। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो संख्या पाँच (पुत्र–होरस), संख्या दो (मां–इसिस) और संख्या तीन (पिता–ओसिरिस) के बीच संबंधों का फल है।

 

7. सृजन का संख्यात्मक अनुक्रम 2,3,5 …एक योग श्रृंखला

2,3,5 … इसिस के संख्यात्मक सृजन के बाद ओसिरिस का संख्यात्मक सृजन, और उसके बाद होरस का संख्यात्मक सृजन का अनुक्रम है।

यह एक प्रगतिशील श्रृंखला है, जिसमें आप प्राचीन मिस्री प्रणाली के दो प्राथमिक संख्याओं यानी 2 और 3 के साथ शुरू करते हैं। फिर आप उसके योग को अगली संख्या को जोड़ सकते हैं, और इसी प्रकार आगे जोड़ते जा सकते हैं—कोई भी संख्या अपने दो पूर्ववर्ती संख्याओं का योग होती है। अतः यह श्रृंखला कुछ इस प्रकार बनेगीः

2
3
5 (3+2)
8 (5+3)
13 (8+5)
21 (13+8)
34 (21+13)
55 (34+21)
89, 144, 233, 377, 610, . . .

 

योग की श्रृंखला समस्त प्रकृति में दिखाई देती है। किसी सूरजमुखी के बीजों की संख्या, किसी फूल की पंखुड़ियाँ, चीड़ के शंकुओं की व्यवस्था, किसी नॉटिलस के खोल का विकास, आदि—ये सभी श्रृंखला के इसी पैटर्न का पालन तो करती हैं।

(इस योग श्रृंखला और प्राचीन मिस्र में कम से कम 4,500 वर्षों के दौरान इसके उपयोग के बारे में और अधिक जानकारी के लिए मुस्तफा गदाला द्वारा लिखित पुस्तक ऐंसिएंट इजिप्शियन मेटाफिजिकल आर्किटेक्चर )

 

[इसका एक अंश: मिस्र का ब्रह्मांड विज्ञान: सजीव ब्रह्मांड , तीसरा संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ] 

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