प्राचीन मिस्र के बेहतर खेती तकनीकों

प्राचीन मिस्र के बेहतर खेती तकनीकों

 

मिस्र दुनिया के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था और आज भी है। हेरोडोटस के अनुसार मिस्र की नील नदी का 90% जल 100 दिवसीय वार्षिक बाढ़ के मौसम में आता था, जैसा कि उसने अपनी द हिस्ट्रीज (2, 92) में लिखा हैः

… गर्मियों के चरम काल में पानी बढ़ना शुरू हो जाता है, और यह प्रक्रिया सौ दिनों जारी रहती है, फिर उस अवधि के अंत में वह वापस घट जाता है, और इस तरह अगले वर्ष फिर से चरम गर्मियों के लौटने तक वह पूरी सर्दियों के दौरान निचले स्तर पर रहता है।

नील नदी के बाढ़ का कारण इथियोपिया में होने वाली बरसात है, जो इथियोपिया के पहाड़ी मैदानों की मिट्टी को नीली नील (ब्लू नाईल) व अन्य सहायक नदियों के माध्यम से मिस्र की ओर बहा लाती है। मध्य अफ्रीका से आने वाली श्वेत नील (व्हाइट नाईल) के माध्यम से मिस्र में बहुत ज्यादा मात्रा में पानी नहीं आता है।

प्राचीन मिस्रवासियों ने अपने सीमित जल संसाधनों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया, और शुष्क-मौसम के दुनिया के सबसे अच्छे कृषक बन गए। प्राचीन मिस्र अपने शुष्क मौसम में सिंचाई और खेती की तकनीक के लिए दुनिया भर में मशहूर था। ड्योडोरस ने मिस्री खेती के कुशल प्रणाली के बारे में कहा था,

होश संभालने से ही खेती-किसानी के बीच पलने-बढ़ने के कारण, वे अन्य देशों के किसानों के मुक़ाबले काफी ज़्यादा माहिर हो गए, इसके साथ ही उन्होंने भूमि की क्षमताओं, सिंचाई की स्थिति, बुवाई और कटाई के सही मौसम, तथा फ़सल के साथ जुड़े अन्य सभी बेहद उपयोगी रहस्यों को अपने पूर्वजों से सीखा, और अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर उसमें सुधार किया।

समूचे नील नदी घाटी में जल का प्रबंधन करने के लिए, ढेर सारी संस्थाएं कायम की गईं थीं, जो बाढ़ के दौरान पानी के प्रवाह का निरीक्षण, मापन, अभिलेखन आदि का कार्य करती थीं। फलस्वरूप, अति प्राचीन काल से ही एक बेहद संगठित और उपयोगी सामुदायिक सिंचाई प्रणाली विकसित हो गई।

जल संरक्षण और दिशा परिवर्तन के संगठित उपायों से प्राचीन मिस्र में उपलब्ध सीमित जल संसाधन का बेहद कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया जाता था। स्ट्रैबो के मुताबिक, मिस्री सामुदायिक सिंचाई व्यवस्था बेहद सराहनीय थी,

जहाँ प्रकृति पूरा नहीं कर पाती वहाँ आपूर्ति के लिए नहरों और तटबंधों की युक्ति अपनाई जाती, और ज़मीन की सिंचाई की मात्रा में नाममात्र का अंतर होता था, चाहे बाढ़ भरपूर आए या कम।

प्राचीन मिस्रवासियों ने सैलाब के मौसम में नील के जलस्तर के बढ़ाव का सूक्ष्मता से निरीक्षण किया। नील के क्रमिक वृद्धि और गिरावट को मापने के लिए, मिस्र के विभिन्न भागों में नीलोमीटर नामक उपकरणों का निर्माण किया गया था, जिनका इस्तेमाल जल के सतह में उतार-चढ़ाव दर्ज करने व सूचना देने में किया जाता था। समूचे मिस्र के सभी नीलोमीटरों की ऊँचाई एकल सामूहिक आंकड़े से जुड़े होते थे। प्रवाह की मात्रा और अवधि को प्रषिक्षित अधिकारियों द्वारा विनियमित किया जाता था, जो जलद्वार की सहायता से पानी के प्रवाह को निश्चित ऊँचाई और अवधि के लिए नियंत्रित करते थे। ड्योडोरस ने अपने बुक 1 (1 9. 5-6), में इसकी पुष्टि करते हुए कहा हैः

बाढ़ के समय में इससे ज़मीन पर नुकसानदेह कुंड नहीं बनता था, बल्कि बाढ़ के पानी को इनके (मिस्रवासियों) बनाए द्वारों के माध्यम से गाँवों की ओर शंत प्रवाह के रूप में छोड़ा जाता था, जैसा कि वास्तव में होना चाहिए था।

विभिन्न जिलों में बाढ़ के पानी का प्रबंधन विभिन्न प्रकार से किया जाता था।  यह कई कारकों पर निर्भर करता था, जैसे कि निकटवर्ती भूमियों की आपेक्षित ऊँचाई/उठान, तथा उस दौरान बोई जाने वाली फ़सल इत्यादि।

प्राचीन मिस्रवासी विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों के लिए मिट्टी के विभिन्न प्रकारों के बारे में जानते थे। यहाँ तक कि उन्होंने रेगिस्तान के किनारे का भी लाभ उठाया, जहाँ की मिट्टी और रेत के मिश्रण वाली मृदा बेल व कुछ अन्य पौधों के लिए काफ़ी उपयुक्त थी।

इथियोपियाई पहाड़ियों से आए गाद से पोषित नाइट्रोजन मिश्रित भूमि के अलावा मिस्रवासी मृदा पोषण के अतिरिक्त उपाय भी आजमाते थे, जैसे कि विभिन्न प्रयोजनों के अनुसार विभिन्न पशुओं और पक्षियों से प्राप्त प्राकृतिक उर्वरक-खाद इत्यादि। इसके अलावा, प्राचीन मिस्रवासी ‘‘रासायनिक’’ उर्वरकों का भी इस्तेमाल करते थे, जो सतहों पर फैलते थे। इनका उपयोग विशेष फ़सलों के लिए किया जाता था, विशेष रूप से वर्ष में देर से होने वाले फ़सलों के लिए।

प्राचीन मिस्रियों ने न केवल निचले इलाकों को पानी उपलब्ध कराया था, बल्कि वे उन भूमियों की भी सिंचाई करने में सक्षम थे, जो नदी से बहुत स्थित दूर थे और बाढ़ का सीधे-सीधे लाभ नहीं ले पाते थे। उन्होंने दूर-दराज़ के रेगिस्तान तक पहुँचने के लिए, नहरों व जल उठाने वाले उपकरणों का उपयोग किया। प्राचीन मिस्र में पानी को ऊँचे नहरों तक ऊपर उठाने के लिए निम्न का उपयोग किया जाता थाः

1. शादूफ़ (ढेंकुली)—यह नील या अन्य स्थानों से कम मात्रा में पानी उठाने का सामान्य तरीका था। इसमें मूल रूप से एक ख्ंभा और एक बाल्टी होते हैं।

2. फिलो द्वारा उल्लेखित पैर की मशीन (पंप), जिसका वर्णन विधि-विवरण (ड्यूट्रोनामी) (xi, 40) में भी है,

वह मिस्र देश के समान नहीं है, जहां तुम बीज बोते थे और हरे साग के खेत की रीति के अनुसार अपने पांव की नलियां बनाकर सींचते थे

3. जलप्रेरित पेंच—पानी के मिस्री पंप दुनिया भर में प्रसिद्ध थे, जिनका इस्तेमाल इबेरिया के खनन कार्यों में किया गया था, जिसकी पुष्टि स्ट्रैबो [जियोग्राफी, (3.2.9)]: के निम्न कथन से होती हैः

अतः पोसीडोनियस का अर्थ है कि टर्डेटेनियन (दक्षिणी स्पेन) खनिक भी समान हैं, क्योंकि वे अपने खान में जाने वाले मार्ग को आड़ा और गहरा काटते हैं, और इस तरह खान के मार्ग में मिलने वाले लहरें उन्हें मिस्री पेंच के साथ परे हटा देती हैं।

‘‘मिस्री पेंच’’ को उसी सिद्धांत के अनुसार डिजाइन और निर्मित किया जाता था जिस पर हमारे आधुनिक पंप बनते हैं, जिसमें एक शाफ्ट के चारों ओर कुंडली रूप में सर्पिल नली होती है, या सिलेंडर में बड़े पेंच होते हैं, जिन्हें हाथ या यांत्रिक तरीके से घुमाया जाता है। हाथ से चलाए जाने वाले उपकरण को मिस्र में अब आमतौर पर तंबौर के नाम से जाना जाता है।

4. पनचक्की (रहट), में बाल्टियां लगी होतीं, जो नदियों से जल ले कर उसे सिंचाई वाली नहरों में डालती थीं। ये ऊँची जगहों के लिए पानी प्रदान करने में सक्षम थीं, इसलिए इन्हें काहिरा के दक्षिण के फैयौम नख़लिस्तान जैसी जगहों पर देखा जा सकता है।

प्राचीन मिस्र में जलकल व भूमि सुधार परियोजनाएं बहुत बड़ी थीं—यहां तक कि हमारे वर्तमान परियोजनाओं के मुक़ाबले भी जिनमें भारी-भरकम उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

1. एक विशाल जलमार्ग पथांतरण परियोजना 4,000 साल पहले पूरी हुई थी। इस परियोजना की शुरूआत वर्तमान अस्युत से हुई थी, जहाँ से नील नदी का काफ़ी पानी लगभग 65 मील दूर काहिरा के दक्षिण पश्चिम में 100 किमी की दूरी पर स्थित वर्तमान फैयौम के क्षेत्र में जाता था। फैयौम नख़लिस्तान समुद्र तल से नीचे स्थित है, और यहाँ क़ारून झील स्थित है। झील को मूल रूप से नील नदी के प्रवाह के जलग्रहण कुंड के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, और यह कभी पूरे क्षेत्र को पाटता था। इस पानी के साथ नील नदी की उपजाऊ गाद आती थी और झील के तल में बैठ जाती थी। इस विशाल प्राचीन परियोजना से फैयौम के आसपास के रेगिस्तान में बर्बाद हो जाने वाले लाखों गैलन पानी का पथांतरण हो गया। इससे झील में पानी का प्रवाह कम हो गया। फलस्वरूप, उपजाऊ मिट्टी से भरपूर मूल झील के लगभग 80% क्षेत्र पर खेती की जाने लगी। नील नदी की इस शाखा के तटों तक पानी को उठाने के लिए ढेर सारे रहटों का इस्तेमाल किया गया। इसके अतिरिक्त, अस्युत के उत्तर नील नदी घाटी में पानी की मात्रा में वृद्धि आने से कृषि योग्य भूमि में वृद्धि हुई।

2. राजा सेनवास्रेत तृतीय (1878-1844 ई.पू.) के समय में (आधुनिक दिवस) सेमना में वृहद सार्वजनिक परियोजनाओं के पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं। सेमना का, तीसरे प्रपात के ऊपर का क्षेत्र उपजाऊ था और बड़ी आबादी का गुज़ारा करता था। मध्य साम्राज्य के दौरान, एक कृत्रिम बांध ने प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया। सेमेना पूर्व में इस बांध के एक हिस्से को आज भी देखा जा सकता है। बांध के निर्माण ने नील के स्तर को दक्षिण में सैकड़ों मील की दूरी तक उठा दिया, जिससे व्यापारिक अभियानों के लिए अफ्रीका के अंदरूनी इलाकों में जाया जा सका। सेमना पूर्व और सेमना पश्चिम के प्रवाह किले के नीचे, चट्टानों पर करीब 25 शिलालेख हैं। ये मध्य साम्राज्य के दौरान दर्ज किए गए नील नदी के बाढ़ के स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं, और ये सभी इसका स्तर आज के अधिकतम पानी के स्तर से 25 फीट (8 मीटर) अधिक दर्शाते हैं।

 

[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]