प्राचीन मिस्र के वास्तविक अविश्वसनीय दूरदराज के युग

प्राचीन मिस्र के वास्तविक अविश्वसनीय दूरदराज के युग

 

१.१ उदीयमान घाटी

मिस्र दुनिया के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था और आज भी है। मिस्र का 90% से अधिक इलाक़ा रेगिस्तान है। यहाँ नील नदी और उसकी शाखाओं के किनारे का इलाका ही आबाद हैजो इस विशाल देश का केवल लगभग 5% भाग है। यह उपजाऊ नील घाटी 11-15 किलोमीटर चौड़ी एक पट्टी है।

नील मिस्र में दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। इसका कारण यह है कि इस देश का ढलान भूमध्य सागर की तरफ़ है। काहिरा के उत्तर में, नील नदी कई उपनदियों में विभाजित हो कर डेल्टा का निर्माण करती है, जिससे करीब 6,000 वर्ग मील (15,500 वर्ग किमी) का एक विशाल हरा भरा उपजाऊ इलाका उत्पन्न होता है।

हेरोडोटस के अनुसार मिस्र की नील नदी का 90% जल 100 दिवसीय वार्षिक बाढ़ के मौसम में आता था (और यह सिलसिला आज भी जारी है), जैसा कि उसने अपनी हिस्ट्रीज (2, 92) में लिखा हैः

गर्मियों के चरम काल में पानी बढ़ना शुरू हो जाता है, और यह प्रक्रिया सौ दिनों जारी रहती है, फिर उस अवधि के अंत में वह वापस घट जाता है, और इस तरह अगले वर्ष फिर से चरम गर्मियों के लौटने तक वह पूरी सर्दियों के दौरान निचले स्तर पर रहता है।

नील नदी के बाढ़ का कारण इथियोपिया में होने वाली बरसात है, जो इथियोपिया के पहाड़ी मैदानों की मिट्टी को नीली नील (ब्लू नाईल) व अन्य सहायक नदियों के माध्यम से मिस्र की ओर बहा लाती है। मध्य अफ्रीका से आने वाली श्वेत नील (व्हाइट नाईल) के माध्यम से मिस्र में बहुत ज्यादा मात्रा में पानी नहीं आता है। श्वेत नील अपने साथ गाद नहीं लाती है—जैसा कि इसके नाम से ज़ाहिर है, ‘‘श्वेत’’ यानी यानी साफ़-सुथरा।

आसवान तक पहुँचते-पहुँचते नीली नील के कीचड़ वाले मौसमी जल की गति धीमी पड़ने लगती है। रफ़्तार में आई इस कमी के कारण पानी के साथ बहता हुआ गाद तल पर बैठने लगता है। इससे नदी का तल धीरे-धीरे समय के साथ उथला होता जाता है, जिससे देश की भूमी भी निरंतर नदी के अनुरूप अपनी-अपनी स्थलाकृतियों तथा बहाव की दूरी के अनुसार परिवर्तित होती जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि पानी के तल में वृद्धि आने के साथ-साथ पानी की सतह ऊँची हो जाती है और इसके साथ ही साथ नील नदी की घाटी और इसके आसपास की भूमि की ऊँचाई में वृद्धि हो जाती है।

इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि ग्रीष्मकाल के वार्षिक बाढ़ के कारण नील नदी की घाटी साल दर साल ऊँची होती जाती है। यह जमाव साल दर साल थोड़ा-थोड़ा करके इकट्ठा होता जाता हैं। जब नील का पानी आसवान तक पहुँचता है, तो इसकी गति धीमी पड़ जाती है, जिसके फलस्वरूप तलक्षट का जमाव होता है। आसवान में बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने के लिए, सदियों पहले पुराने आसवान बांध का निर्माण किया गया था। निरंतर गाद के कारण, हर कुछ दशकों में बांध की ऊँचाई को लगातार बढ़ाना आवश्यक था। (परिशिष्ट क में चित्र देखें)

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उदाहरण के लिए, नील द्वारा एस्ना में हर साल जमाया जाने वाला चौथाई इंच के नाममात्र की मोटाई वाला तलक्षट 2 हजार साल में एस्ना के मंदिर को दफ़न करने में सक्षम था, और आज का आधुनिक एस्ना शहर मंदिर की छत से कही अधिक ऊँचाई पर बसा है। (परिशिष्ट क में चित्र देखें)

जैसा कि हम यहाँ देखते है कि यह मंदिर पुराने मंदिरों के छत पर बनाया गया था, जो कि  तलछट या गाद के सालाना जमाव के कारण दफ़न हो चुके थे।

समूचे मिस्र में अलग-अलग जगहों पर स्थित अनेकों मे मंदिरों, जैसे कि एद्फु, लक्सौर और अबीडोस आदि में इस जमाव की समस्या का प्रभाव साफ़ दिखाई देता है। (परिशिष्ट क में चित्र देखें)

यहाँ तक नील नदी से काफ़ी दूर भीतरी इलाके़ में स्थित अबीडोस में हमें इसका एक और उदाहरण देखने को मिलता है, जहाँ ओसीरियन नामक एक बहुत पुरानी विशाल संरचना है, जो नए साम्राज्य के ओसीरिस के मंदिर के ठीक बगल में मौजूद है, इसे राजा सेति प्रथम (1333-1304 ईसा पूर्व) और उसके उत्तराधिकारी रैमसेस द्वितीय द्वारा बनाया गया था। यह ओसिरियन संरचना नए साम्राज्य के ओसीरिस के मंदिर की सतह से काफ़ी नीचे स्थित है और इसका कुछ हिस्सा भौम जलस्तर के नीचे जलमग्न है। ओसिरियन संरचना की नींव, वर्तमान जलस्तर से कई फुट नीचे है, जो नए साम्राज्य के समय से लगभग 20 फीट (18 मीटर) बढ़ चुका है।

यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि कई फ़िरऔन ने उन इमारतों पर अपने नाम लिख छोड़े हैं, जिन्हें उन्होंने नहीं बनवाया था। इसलिए, अगर इस ओसीरियन भवन के कुछ हिस्सों पर सेती ने अपना नाम लिखवा दिया तो इसका मतलब यह कत्तई नहीं कि इसे सेती ने बनवाया था।

ओसीरियन और सेती के मंदिर के सतह की ऊँचाई में काफी अंतर है, साथ ही साथ इनके शैलियों में नाटकीय अंतर होने के कारण कई विद्वानों की राय है कि ओसीरियन बहुत पुरानी इमारत है। (परिशिष्ट क में चित्र देखें)

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मिस्री सभ्यता की अति प्राचीनता के सबूत ओसीरियन्स से लेकर गिज़ा और समूचे मिस्र में यहाँ-वहाँ फैले पड़े हैं।

 

१.२ प्रारंभिक बिंदु

हेरोडोटस ने लिखा है कि उन्हें मिस्र के पुजारी ने बताया था कि सूरज जहाँ से अभी उगता है, वहाँ दो बार डूब चुका है, और जहाँ अभी डूबता है, वहाँ से दो बार उग चुका है। इस बयान से ज़ाहिर होता है कि प्राचीन मिस्रवासी अपने इतिहास को 25,920 वर्षों के एक राशि चक्र से ज़्यादा पहले का मानते थे।

25,920 साल का राशि चक्र पृथ्वी की लड़खड़ाहट भरे घूर्णन गति के परिणामस्वरूप होता है, क्योंकि वास्तव में पृथ्वी अपने अक्ष पर नहीं घूमती, बल्कि वह तो किसी लट्टू की तरह गोल-गोल घूमती है। (अध्याय 11 में इसके मूल सिद्धांतों के आरेख और व्याख्या को देखें।) यदि आकाश को एक नक्षत्रीय पृष्ठभूमि माना जाए, तो पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की वजह से, वासन्तिक विषुव प्रतिवर्ष नक्षत्रीय पृष्ठभूमि में धीरे-धीरे चढ़ता है।

नक्षत्रों से होकर विषुवों के अग्रगमन से बारह राशि युगों को उनका नाम मिलता है। एक राशि चिन्ह से अग्रगमन करने में, विषुव को मोटे तौर पर 2160 साल लग जाते हैं। इस प्रकार वासन्तिक विषुव को, बारह राशियों के नक्षत्रमंडल का पूरा परिपथ पार करने में लगभग 25,920 साल लग जाते हैं। इस पूरे चक्र को महावर्ष या संपूर्ण वर्ष कहा जाता है।

इसलिए, सूर्य के अस्त तथा ऊदय होने से संबधित हेरोडोटस के कथन का मतलब होगा कि मिस्रवासी अपने इतिहास को एक संपूर्ण राशि चक्र से अधिक लंबा मानते थे। प्राचीन मिस्र में, विषुव के पूर्ववर्ती चक्रों को देखा और दर्ज किया गया था। (अध्याय 11 में खगोल विज्ञान देखें)।

हमारा वर्तमान राशि चक्र (महावर्ष/संपूर्ण वर्ष) सिंह के युग से शुरू हुआ थाः

सिंह का युगः 10948-8788 ई.पू.

कर्क का युगः 8787-6628 ई.पू.

मिथुन का युगः 6627-4468 ई.पू.

वृष का युगः 4467-2308 ई.पू.

मेष का युगः 2307-148 ई.पू.

प्राचीन मिस्र का इतिहास 25,920 वर्षों के संपूर्ण राशि चक्र में फैला हुआ है, जिसमें एक आंशिक राशि चक्र भी शामिल है, जो 10948 ई.पू. से लेकर मेष युग के अंत के उस दौर जारी रहा जब प्राचीन मिस्र ने अपनी स्वतंत्रता खोई थी। अतः, प्राचीन मिस्र का इतिहास [25,920 + (10,948 – 148)] = 36,720 साल पुराना है।

हम आगे और भी अलग-अलग गणनाओं के माध्यम से इसकी प्राचीनता को परखेंगे।

इस प्रकार 36,000 वर्ष पुरानी प्राचीन मिस्री सभ्यता — धरती पर जीवन के आरंभ होने की —ईसाई तथा पश्चिमी मान्यताओं के विपरीत हैं।

दोनों की मान्यता है कि धरती पर जीवन तकरीबन 5000 साल पुराना है। फलस्वरूप, यह बात बार-बार दोहरायी गयी, कि फ़िरऔन मेना (इक्तीसवीं शताब्दी ईसा पूर्व) ने मिस्र को एकीकृत किया और प्राचीन मिस्री सभ्यता की शुरुआत हुई।

फ़िरऔन मेना (मेनस) के बारे में बार-बार दोहराया जाने वाला यह मनमाना और निराधार दावा प्राचीन मिस्र के इतिहास की शुरुआत के साक्ष्यों के विपरीत है। पुराने यूनानी और रोमन लेखकों द्वारा मिस्री स्रोतों को अपनी सूचनाओं का सीधा-सीधा या किसी माध्यम द्वारा आधार ठहराया जाना, मिस्री सभ्यता को इन पंडितो के मनमानी मान्यताओं से कहीं अधिक प्राचीन साबित करता है।

प्राचीन मिस्र के फ़िरऔन का कालनिर्धारण मेना के समय से किया जाना मूल रूप से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मनेतो ने शुरु किया था। मनेतो के कार्य कालकलवित हो चुके हैं—हमारे पास केवल सेक्स्टस अफ्रीकैनस (221 ई.) तथा कैसरिया के यूसेबियस (264-340 ई.) द्वारा की गई टिप्पणियां ही उपलब्ध हैं। यूसेबियस के अनुसार, मनेतो ने फ़िरऔन काल के मिस्र की अति प्राचीनता का वर्णन करते हुए इसकी आयु 36,000 वर्ष बतायी थी जो हेरोडोटस के विवरणों के अनुरूप है। यह सिसिली के ड्योडोरस (ड्योडोरस 1, 24) तथा ट्यूरिन पेपिरस के नाम से मशहूर प्राचीन मिस्री दस्तावेज़—जो सत्रहवें राजवंश (1400 ईसा पूर्व) के समय का असली मिस्री दस्तावेज़ है—जैसे अन्य व्याख्याओं तथा साक्षीय अनुसंधानों से मेल खाता है।

भौतिक साक्ष्य भी प्राचीन मिस्र के पुरातन काल का समर्थन करते हैं — बावजूद  इस तथ्य के न जाने कितने ही पुरातात्विक साक्ष्य नील घाटी की ऊँचाई में वृद्धि होने के कारण वर्तमान जलस्तर से काफ़ी नीचे दफ़न हो चुके हैं (जैसा कि परिशिष्ट ख में चित्रों की सहायता से बताया गया है)। कई प्राचीन मिस्री लेखों, मंदिरों तथा मक़बरों के उपलब्ध साक्ष्य यूनानी एवं रोमन लेखकों की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, समूचे मिस्र के मंदिर मूल रूप से अपने राजवंशीय इतिहास से काफ़ी पहले निर्मित होने का इशारा करते हैं। देंदेरा में हेत-हेरू (हथौर) के मंदिरों में लिखे गए लेखों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि टॉलमी के समय में पुनर्निमित किया जाने वाला मंदिर छठवें राजवंश के राजा पेपी (2400 ईसा पूर्व) के समय के रेखाचित्रों पर आधारित है। वे रेखाचित्र ख़ुद भी हजारों साल पुराने (हेरु के दासों के काल के) दस्तावेज़ों की नकल थे। लेख में कहा गया हैः

दो भूमियों के स्वामी …पेपी के काल में, मेन-नेफेर (मेम्फिस) में, एक मंजूषा के अंदर, हेरु के दासों (=मेना/मेनस के पूर्ववर्ती राजाओं) के समय के चमड़े के रोल पर लिखे पुराने लेखों मे देंदेरा में पवित्र नींव का ज़िक्र है।

जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कि बहुत सारे मिस्री मंदिरों के धरातल को ऊँचा करना पड़ता था—इस बात की पुष्टि हेरोडोटस ने भी की है एवं इसके भौतिक साक्ष्य समूचे मिस्र में मौजूद हैं। यहाँ तक कि कुछ प्राचीन मिस्री मंदिरों का पुनोर्द्धार यूनानी—रोमन काल में भी किया गया, और उन सभी को उन प्राचीन मिस्री योजनाओं, प्रतीकों, देवताओं, चित्रों आदि के अनुसार पुनर्निमित किया गया जो यूनानी—रोमन युग के काफ़ी पहले से समूचे देश के मंदिरों और मक़बरों में पायी जाती रही हैं।

 

१.३ सिंह एवं स्फिंक्स का युग

हमारी वर्तमान राशि चक्र का आरंभ सिंह के युग (10948-8788 ईसा पूर्व) के साथ हुआ, जिसकी प्रतीक गिज़ा की महान स्फिंक्स है, जिसका सिर मानव का तथा शरीर शेर का है। स्फिंक्स के स्थान पर मौजूद ऐतिहासिक एवं भौतिक प्रमाण दोनों, इस आम किंतु आधारहीन धारणा के बावजूद कि स्फिंक्स को 2520-2494 ईसा पूर्व के दौरान ख़फ्र (शेफरन) के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, इसकी अति प्राचीनता का संकेत देते हैं।

गिज़ा के पिरामिड तथा उसके निर्माता फ़िरऔन (ख़फ्र सहित) के बारे में विस्तार से लिखने वाले हेरोडोटस ने स्फिंक्स के निर्माण का श्रेय कभी ख़फ्र को नहीं दिया। स्फिंक्स के बारे में लिखने वाले अन्य प्राचीन लेखकों ने भी इसके निर्माण का श्रेय कभी किसी ख़ास फ़िरऔन को नहीं दिया।

महान स्फिंक्स की प्राचीनता के बारे में भौतिक साक्ष्य का एक शानदार नमूना, उन्नीसवीं सदी में गिज़ा से प्राप्त प्राचीन मिस्री शिलापट्ट है, जिसे आमतौर पर ‘‘तालिका शिलापट्ट या इन्वेंटरी स्टेल’’ के नाम से जाना जाता है। यह शिलापट्ट ख़फ्र के पूर्ववर्ती खुफू (चेओप्स 2551-2528 ईसा पूर्व) के शासनकाल के दौरान की घटनाओं का वर्णन करता है, तथा इंगित करता है कि खुफू ने स्फिंक्स के पास एक स्मारक के निर्माण का आदेश दिया था। इसका अर्थ यह हुआ कि स्फिंक्स खुफू के समय से पहले ही वहां पर मौजूद था, इसलिए यह उसके उत्तराधिकारी, ख़फ्र (2520-2494 ईसा पूर्व) का बनाया हो ही नहीं सकता।

चूंकि ‘‘तालिका शिलापट्ट’’ से पश्चिमी पंडितों की, ख़फ्र की स्फिंक्स के निर्माता के रूप में बनी-बनाई धारणा खंडित होती थी, इसलिए उन्होंने शिलापट्ट को यह कह कर खारिज कर दिया कि इसकी शैली नव राजवंश (1550-1070 ईसा पूर्व) की प्रतीत होती है। हालाँकि इसे खारिज करने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं है, क्योंकि पुराने राजवंश (2575-2150 ई.पू.) के कई शिलापट्ट और लेख हैं, जिनकी नकल बाद में नए साम्राज्य के काल में की गई, और कोई भी उनकी प्रामाणिकता को खारिज नहीं कर पाया। हर काल में हर जगह के लोग पुराने दस्तावेज़ों की नकल करते रहे हैं, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए उस ज्ञान को संरक्षित किया जा सके।

जब खुफू ने महान पिरामिड का निर्माण करवाया तो स्फिंक्स पहले से वहाँ मौजूद था, इस बात के तालिका शिलापट्ट में स्पष्ट साक्ष्य होने के बावजूद कुछ लोग ख़फ्र को निर्माता बताते हैं, जबकि उनकी यह धारणा दो बेहद संदेहास्पद आधारों पर टिकी हैः

1. फ़िरऔन त्वत होमोसिस (तुथोमोसिस) चतुर्थ (1413-1405 ई.पू.) से संबधित एक शिलापट्ट, जिसे स्फिंक्स के पंजों के बीच रखा गया था। यह एक लंबा लेख है, और कुछ लोगों का दावा है कि ख़फ्र (शेफरन) का नाम उस पर प्रतीत होता है, भले ही कथित नाम के आसपास की लिखाई अस्पष्ट हो। दरअसल यह स्फिंक्स वाली जगह पर ख़फ्र का नाम घुसाने का हताशा भरा प्रयास है।

2. ख़फ्र के पिरामिड मंदिर और घाटी के मंदिर के बीच लगभग 1650 फीट (500 मीटर) लंबा एक प्रवेशद्वार है। पश्चिमी पंडित इस बात पर ख़ूब जोर देते हैं कि प्रवेशद्वार की मौजूदगी ही ख़फ्र के साथ इसका संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त है, हालाँकि स्फिंक्स पर या इस मंदिर में इस तरह का कोई शिलालेख नहीं हैं।

3. बाद में हुए उत्खननों में इस मंदिर में कई मूर्तियां प्राप्त हुईं, जिसके बारे में दावा किया गया कि वह ‘‘स्फिंक्स’’ के सर के समान प्रतीत होती हैं। हालाँकि, जब स्फिंक्स के चेहरे की रूपरेखा पर मूर्तियों के चेहरे की रूपरेखा को आरोपित किया गया तो दोनो के बीच कोई समानता नहीं पाई गई। चलिए अगर हम उस शिलापट्ट पर लिखे नाम या बेमेल मूर्तियों के दावों को थोड़ी देर के लिए मान भी लें, तो इसका सबसे अच्छा यह निष्कर्ष यह हो सकता है कि फ़िरऔन ख़फ्र, फ़िरऔन त्वत होमोसिस से पहले स्फिंक्स का जीर्णोद्धार कराने वाला अंतिम फ़िरऔन रहा हो जिसने फ़िरऔन त्वत होमोसिस के काल से लगभग 1,000 साल पहले उसका जीर्णोद्धार किया हो।

स्फिंक्स के स्थल के भौतिक सबूत इसकी प्राचीनता को राशि चक्र के सिंह युग से जोड़ते हैं।

स्फिंक्स का मूल स्थान, एक हल्की ढलान वाला समतल था, जिसकी सतह कठोर चट्टान की थी। स्फिंक्स की मुख्य विशेषताओं में विभिन्न भौगोलिक स्थितियां शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. स्फिंक्स का सिर कठोर चट्टानी परत वाला है, जो प्राकृतिक तत्वों से इसकी सुरक्षा करता है।

2. स्फिंक्स का शरीर जगह-जगह से निकाले गए ऐसे पत्थरों से बना है, जिसे शरीर के आकार में ढालना आसान था। स्फिंक्स का शरीर नरम चूना पत्थर से बनाया गया था, जिसमें बारी-बारी से कठोर और नरम परतें हैं। इन परस्पर परतों को स्फिंक्स वाली जगह पर प्राकृतिक क्षरण के रूप में देखा जा सकता है, जो आधारशिला से लगभग 2 फीट की गहराई में है।

3. स्फिंक्स का आधार और उसके साथ-साथ मूल उत्खनन स्थल का तल, कठोर चूना पत्थर से बना है, जो प्राकृतिक तत्वों से इसकी सुरक्षा करता है।

चूंकि स्फिंक्स का शरीर एक गड्ढे में स्थित है, इसलिए इसे भरने और इसके शरीर को पूरी तरह से ढँक जाने में 20 साल से भी कम समय लगता है। पिछली शताब्दी को अपवाद छोड़ दें, तो स्फिंक्स हजारों साल पहले जब से बना तब से रेत में ढँका ही रहा। इसलिए, स्फिंक्स हवा और रेत जैसे मौसमी प्रभावों से सुरक्षित रहा। हालाँकि, स्फिंक्स के शरीर पर क्षरण के जैसे निशान मौजूद हैं, ठीक वैसे ही क्षरण के साफ निशान दो फीट की गहराई में उत्खनन के गड्ढे (स्फिंक्स के शरीर के चारों ओर) की दीवारों पर मौजूद हैं। ज़ाहिर है, ये शिला और स्फिंक्स दोनों वहाँ इस प्रचंड मौसम की घटना से पहले से मौजूद थे।

कई पंडितों ने यह मान कर संतोष कर लिया है कि पानी के कारण स्फिंक्स के शरीर का क्षरण हुआ। यहाँ प्रश्न यह उठता हैः आखि़र पानी से इस प्रकार की विचित्र क्षरण आकृति कैसे बनी? भूजल को इस तरह के क्षरण का कारण नहीं मान सकते, क्योंकि एक अनुमान के मुताबिक ख़फ्र के समय का (2520-2494 ई.पू.) जलस्तर वर्तमान जलस्तर से 30 फीट (9 मी.) नीचे था। दूसरे शब्दों में, भूजल के कारण दो फीट गहरे स्फिंक्स के शरीर तथा खुदाई के गड्ढे की दीवारों का क्षरण हो पाना असंभव है।

जैसा कि इस अध्याय की शुरुआत में स्पष्ट किया गया, कि हजारों वर्षों के समयावधि में नील नदी के जल से धीरे-धीरे घाटी के मैदान पर अतिरिक्त तलक्षट जमा होता गया। जैसे-जैसे जमीन की ऊँचाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे जलस्तर भी ऊँचा होता गया। इसलिए स्फिंक्स वाली जगह पर भूजल के कारण क्षरण वाले सिद्धांत के खिलाफ बेहद पुख़्ता सबूत हैं। इसके अलावा इस बात का कोई और तर्कसंगत उत्तर नहीं है, सिवाय इसके कि पिछले हिमयुग के अंत (15,000-10,000 ई.पू.) में पानी का क्षरण हुआ। भूविज्ञानी मानते हैं कि मिस्र पिछले हिमयुग के अंत में भीषण बाढ़ का शिकार हुआ था।

स्फिंक्स की प्राचीनता का एक और ज़बर्दस्त सबूत, स्फिंक्स के खंडहर मंदिर के सामने (स्फिंक्स के सामने स्थित, तथा जनता के लिए बंद) हुए एक हालिया ड्रिल से यह रहस्य सामने आया कि, 54 फीट (16.5 मीटर) की गहराई पर लाल ग्रेनाइट मौजूद है। ग्रेनाइट उत्तरी मिस्र में नहीं पाया जाता और यह केवल आसवान से आ सकता है, जो वहाँ से 1,000 मील दक्षिण में स्थित है। इतनी गहराई में ग्रेनाइट की उपस्थिति, एक प्रमाण है कि यहाँ पर निर्माण संबंधी गतिविधियाँ 3000 ईसा पूर्व के बहुत पहले से चालू थीं—जब यहाँ की भूमि की सतह हमारे वर्तमान सतह से 54 फीट (16.5 मीटर) नीचे थी।

अंततः, उपरोक्त दमदार भौतिक और ऐतिहासिक प्रमाण हमें इस तर्कसंगत निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं, कि ख़फ्र ने स्फिंक्स का निर्माण नहीं कराया था, बल्कि वह उन अनेकों फ़िरऔन में से एक था, जिन्होंने समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार कराया। प्राकृतिक कारणों से, प्राचीन मिस्री स्मारकों को हर कुछ दशकों या शताब्दियों में जीर्णोद्धार किए जाने की आवश्यकता पड़ती थी। गिज़ा के स्फिंक्स के प्रमाण इसे राशि काल के प्राचीन मिस्री प्रतीक, 13,000 वर्ष पूर्व के सिंह युग से संबंधित होने की तरफ़ इशारा करते हैं।

इस किताब के परिशिष्ट ख में, इस उपखंड के लेख के समर्थन वाली कई तस्वीरें मिलेंगी। चित्र में प्रदर्शित किया जाएगाः

स्फिंक्स—सामान्य स्थान, वह मूल स्थान जहाँ स्फिंक्स स्थित है, एक हल्की ढलान वाला समतल था, जिसकी सतह कठोर चट्टान वाली थी।

स्फिंक्स—स्फिंक्स का शीर्ष

स्फिंक्स— स्फिंक्स के गड्ढे का कठोर आधार

स्फिंक्स—शरीर का क्षरण

स्फिंक्स—स्फिंक्स की दीवारों का क्षरण

स्फिंक्स— गड्ढे और शरीर पर क्षरण की आकृतियाँ

स्फिंक्स— हवा और रेत से प्राकृतिक संरक्षण

स्फिंक्स—शुरुआती उन्नीसवीं सदी

स्फिंक्स—पठार से 150 फीट (46 मीटर) ऊपर स्थित खफ्रा के पिरामिड मंदिर में मौजूद स्फिंक्स के शरीर पर भी क्षरण से ठीक ऐसी ही आकृतियाँ बनीं हैं। इस मंदिर के मामले में निश्चित रूप से कोई भूजल जैसी कोई बात नहीं हो सकती। तो फिर हम ठीक उसी प्रकार के क्षरण की व्याख्या कैसे करेंगे? इसके अलावा इस बात का कोई और तर्कसंगत उत्तर नहीं है, सिवाय इसके कि पानी का यह क्षरण पिछले हिमयुग के अंत (15,000-10,000 ई.पू.) में हुआ।

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[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ] 

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