मानव जा रहा है-यूनिवर्सल प्रतिकृति [9 अवयव]

मानव जा रहा है-यूनिवर्सल प्रतिकृति [9 अवयव]

 

1.वह एक जो एक में संयुक्त हुआ

अगर इंसान अपनेआप में एक लघु ब्रह्मांड है, तो इंसान के सभी घटकों की अनुकृति ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर मौजूद होगी। मनुष्य की सभी प्रबल प्रवृत्तियां और प्रेरणाएं, बड़े पैमाने पर ब्रह्मांड में भी प्रबल होंगी। मिस्र की ब्रह्मांडीय चेतना के अनुसार, छींकना,  झपकना, थूकना, चिल्लाना, रोना, नाचना, खेलना, खाना, पीना, और संभोग करने सहित इंसान द्वारा किए जाने वाले सभी काम ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर निष्पादित होते हैं।

प्राचीन मिस्रवासियों के लिए, इंसान, एक लघु ब्रह्मांड के रूप में, सारी सृष्टि की निर्मित छवि का प्रतिनिधित्व करता था। जब रे—अलौकिक रचनात्मक आवेग— ने कहा,

वह एक जो एक में संयुक्त हुआ, वह जो अपने अवयवों में से बाहर निकला।

इसलिए इंसान (सृष्टि की छवि) भी ठीक ऐसे ही, एक साथ जुड़े हुए हैं। मानव शरीर एक इकाई है, जिसमें अलग-अलग अंग एक साथ जुड़े होते हैं। रे के स्तुति में, दिव्य मानव के शरीर के प्रत्येक अंगों को किसी नेतेर (देवता) या नेतेर्त (देवी) का रूप बताया गया है।

प्राचीन मिस्रवासियों के लिए, मानव सृष्टि के विधान का मूर्तरूप था। इस तरह, शारीरिक कार्यों और शरीर के विभिन्न भागों की प्रक्रियाओं को ब्रह्मांडीय कार्यों की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता था। अंगों के षारीरिक उद्देश्य के अलावा, उनके आध्यात्मिक कार्य भी थे। मिस्र के समूचे ज्ञात इतिहास के अभिलेखों में यह बात मिलती है, कि शरीर के अंगों को एक नेतेरु (दिव्य तत्वों) को समर्पित किया जाता था। रे की स्तुति के अलावा, यहां कुछ अन्य उदाहरण दिए गए हैं:

  • सक्कारा के यूनस के मकबरे (रुब्बल पिरामिड) के ताबूत कक्ष से, प्राप्त उक्तियों 215 § 148-149 में शरीर के कुछ अंगों (सिर, नाक, दांत, हाथ, पैर, आदि), को दिव्य नेतेरु (देवी-देवता) के साथ जोड़ा गया है।

        सिर है तेरा होरस का
         . . .
         है नाक तेरी अनुबिस
        दांत तेरे हैं सोपदू
        हापी और दुआमुतेफ तेरे बाजू,
       . . .
       तेरे पैर इमेस्ती और केबेहसेनफ हैं,
        . . .
      सारे अंग तेरे हैं जुड़वाँ अतम के।

  • अनी के पेपिरस से [pl. 32, आइटम 42]:

मेरे बाल नून हैं, मेरा चेहरा रे है, मेरी आँखें हैथौर हैं, मेरे कान वेपवावेत हैं, मेरी नाक वह है जो अपने कमल के पत्ते पर संचालन करती हैमेरे होंठ अनुबिस हैं, मेरी दाढ़ सेलकेत हैं, मेरे कृन्तक इसिस हैं, मेरी बाहें मेंडेस के भगवान मेष हैं, हैं, मेरे स्तन नेइथ हैं, मेरी पीठ सेत है, मेरा शिश्न ओसिरिस है, … मेरे पेट और मेरी रीढ़ सेखमेत हैं, मेरे नितंब होरस के नेत्र हैं, मेरी जांघों और मेरी पिण्डली नूत हैं, मेरे पैर पिताह हैं, … मेरा कोई भी अंग नेतेर (देवीदेवताओं) से रहित नहीं है, और थोथ मेरे सारे मांस की सुरक्षा करते हैं।

प्रत्येक अंग के देवत्व के बारे में उपर्युक्त लेख के बाद संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बचती हैः

मेरा कोई भी अंग नेतेर (देवी-देवताओं) से रहित नहीं है।

 

2. शरीर के अंगों का आध्यात्मिक/भौतिक कार्य

मानव अंग के उपयोग के आध्यात्मिक पहलू का वर्णन करना एक इंसानी प्रवृत्ति है। प्राचीन मिस्री लेख और प्रतीक इस सम्पूर्ण बोध से भरे पड़े हैं कि इंसान (संपूर्ण और अंग) ब्रह्मांड (संपूर्ण और अंग) की छवि है।

यहाँ मानव अंगों के आध्यात्मिक/भौतिक कार्यों के कुछ प्राचीन मिस्री उदाहरण दिए जा रहे हैं

  • हृदय

हृदय को बौद्धिक विचारों, चेतना, और नैतिक साहस का प्रतीक माना जाता है/था। होरस हृदय का प्रतीक है।

  • जीभ

जीभ मानव शरीर की सबसे मजबूत मांसपेशी है। उसके शब्द का इंसान का अर्थ है कि वह जो कुछ भी अपनी जुबान से कहता है वह चरितार्थ हो जाएगा। जीभ का प्रतीक थोथ है।

  •  जैसा कि तीसरे राजवंश के पुनर्निर्माण, शबाका पट्ट (716-701 ई.पू.) में कहा गया है, हृदय और जीभ दोनों एकदूसरे के पूरक हैं।

हृदय सब कुछ सोचता है जो वह चाहता है,
और जीभ सबकुछ कहती है जो वह चाहती है।

(हृदय और जीभ की भूमिका के बारे में और अधिक जानकारी पूरे पुस्तक में मौजूद है)

  • रीढ़ और पेट

हमारे आधुनिक समाज में, पेट और रीढ़ शारीरिक साहस के प्रतीक हैं। इस अवधारणा की जड़ें प्राचीन मिस्र तक जाती हैं। अनी की पेपिरस (32 आइटम 42) में लिखा है,

मेरे पेट और मेरी रीढ़ सेखमेत हैं

सेखमेत एक शेरनी के सिर वाली नेतेर्त (देवी) है। शेरनी सबसे निडर पशु है।

(कुछ अन्य मानव अंगों के आध्यात्मिक कार्यों के बारे में और अधिक जानकारी पूरे पुस्तक में मौजूद है)

 

3. मनुष्य के नौ घटक

हम एक साथ, सर्वाधिक अध्यात्मिक से लेकर सर्वाधिक भौतिक तक, कई अलग-अलग स्तरों पर रहते हैं। इस अर्थ में भौतिक और आध्यात्मिक के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं होता है, बल्कि उनके विस्तार के दोनों सिरों के बीच केवल अलग-अलग श्रेणियां होती हैं।

यह माना जाता है कि जन्म के समय, कोई इंसान एक भौतिक शरीर (खत) तथा एक अभौतिक प्रतिरूप (का) प्राप्त करता है, जो शरीर के अंदर रहता है और हृदय में रहने वाले बा के साथ निकटता से जुड़ा रहता है, तथा भौतिक शरीर की छाया के साथ जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। शरीर में कहीं पर खु या आत्मा के प्राण वास होता है, जिसकी प्रकृति अपरिवर्तनीय, अविनाशी और अमर होती है।

फिर भी ये सभी एक साथ अविभाज्य रूप से बंधे थे, और उनमें से किसी भी एक का कल्याण, सभी के कल्याण के संबंधित था; और ये यूनस लेखों (सामान्यतः इन्हें “पिरामिड” के रूप में जाना जाता है) जितने पुराने समय में भी एक साथ जुड़े थे। हर एक की अपनी-अपनी विशिष्टताएं और षक्तियाँ हैं; लेकिन अलग-अलग घटकों के बीच द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय संबंध रहते हैं।

प्राचीन मिस्री ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार एक पूरे इंसान में निम्नानुसार नौ घटक होते हैं:

1. जीवन-शक्ति—जिसे सेखेम कहते हैं

2. एक (गुप्त) नाम— जिसे रेन कहते हैं

3. आत्मा का प्राण— जिसे खु कहते हैं

4. एक साया— जिसे खैबेत कहते हैं

5. हृदय का प्राण (निराकार शरीर)— जिसे बा कहते हैं

6. एक प्रतिरूप/छवि— जिसे का कहते हैं

7. हृदय (चेतना)— जिसे अब कहते हैं

8. आत्मा का शरीर— जिसे साहू कहते हैं

9. प्राकृतिक शरीर— जिसे खत कहते हैं

1. सेखेम

सेखेम जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

रे को महान सेखेम  कहा जाता था।

सेखेम का उल्लेख, बा और खु के साथ संयोजन में किया गया है।

सेखेम खु से संबंधित (संबद्ध) है।

2. रेन

रेन, इंसान का (गुप्त) नाम है, जिसके बारे में मान्यता थी कि वह स्वर्ग में रहता है, तथा यूनस( “पिरामिड”) लेखों में कहा गया है

    उसका नाम, उसके का के साथ रहता है

3. आत्मा का प्राण (खु)

खु एक उच्च आध्यात्मिक तत्व है। यह एक चमकदार और दीप्त घटक होता है। खु भी स्वर्ग के जीव होते हैं जो नेतेरु (देवी-देवता) के साथ रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक खु प्रमुख देवदूत जैसा हो सकता है।

खु, के साथ बा और खाई-बित (प्राण और छाया) तथा बा और का (प्राण और प्रतिरूप) के संबंध का उल्लेख किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह का, बा और खैबीत से काफी कुछ अलग है, हालांकि इंसान के इन अभौतिक अस्तित्वों की कुछ विशेषताओं से इसकी समानता अवश्य है।

4. खाई-बीत

खैबीत (ख़बीस) छाया या परछाईं है—जो प्रकाश में रुकावट डालता है। यह वह अस्तित्व प्रतीत होता है, जो निम्न का को उनके समस्त कामनाओं और वासनाओं के साथ केंद्रित या इकट्ठा करता है। खैबीत हमारे प्रेत की धारणा के समान होता है—जो ज्यादातर कब्रिस्तानों में प्रकट होता है।

बलदी मिस्रियों का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति का एक साया-एक अलग अस्तित्व-होता है, जो जीवन में उसका अनुसरण करता है, और मरने पर उसके साथ कब्र में चला जाता है।

यहाँ ध्यान देने लायक दिलचस्प बात यह है, कि मिस्री शब्द ‘खाई’ का मतलब साथी/भाई होता है।

5. बा—हृदय का प्राण (निराकार शरीर)

जिस तरह से उपर्युक्त तीसरा घटक खु आत्मा का प्राण  है, वैसे ही यहाँ दिया गया पाँचवां घटक हृदय का प्राण  है।

बाद में हम सातवें घटक के रूप में हृदय अब (बा की विपरीत वर्तनी) देखेंगे।

यहाँ यह याद रखा जाना जरूरी है, कि हृदय शब्द का अर्थ मानव शरीर का अंग नहीं बल्कि चेतना है।

इसलिए बा हृदय के प्राण के रूप में, मनुष्य की जीवन शक्ति की समग्रता का प्रतीक है, जिसमें भौतिक और मानसिक दोनो क्षमताएं आती हैं। इसलिए बा को इंसानी सर वाले पक्षी के रूप में दिखाया गया है।

बेनू पक्षी ब्रह्मांड में बा की अवधारणा की समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है।

सृष्टि का चक्र द्वैत रा और ओसिरिस/आउस-रा, की भूमिका को दर्शाता है, सभी के अंदर बा होता है, और बेनू पक्षी को रा और ओसिरिस/आउस-रा दोनों का बा  माना जाता हैं।

संक्षेप में कहें तो, बा निम्न का प्रतीक हैः

– बाह्य अभिव्यक्ति
– शक्ति/जीवन शक्ति के मूर्तरूप

शक्ति की अभिव्यक्ति या प्रकट शक्ति, स्वतंत्र रूप से (शरीर के बिना) नहीं हो सकतीः और इसलिए मानव बा को शरीर के साथ संपर्क बनाए रखना चाहिए।

6. का या प्रतिरूप (सूक्ष्म शरीर)

का की शक्ति अस्तित्व को नियत कर उसे सजीव आत्मा बनाती है, जिसे बा कहते हैं।

‘का’ आकर्षण या चुंबकीय शक्तियों का एक सम्मिश्रण है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है ‘व्यक्तित्व’: यानी “मैं” की सर्वव्यापी भावना जो शरीर में होती है, मगर वह शरीर नहीं होती। (पक्षाघात या बेहोशी के कारण शरीर का भाव पूरी लुप्त हो जाने पर भी “मैं” मौजूद हो सकता है)

का निम्नलिखित का सम्मिश्रण है।

1. पाशविक ‘का’ शरीर की इच्छाओं के साथ सम्बन्धित होता है;

2. दिव्य ‘का’, आत्मा की पुकार के प्रति सजग होता है, और

3. मध्यवर्ती ‘का’ उन लोगों को प्रेरणा देता है, जो पाशविक ‘का’ पर धीरे-धीरे नियंत्रण पा कर उसे दिव्य ‘का’ के राह पर लाने की कोशिश करते हैं।

‘का’ की अवधारणा के मूल में यह दृढ़ विश्वास निहित है, कि चेतना एवं सक्रियता शरीर का कार्य नहीं है, बल्कि वह किसी उच्च शक्ति से प्रवाहित होती है, और शरीर को सक्रिय करती है, इस तरह वास्तविकता में जीवन के लिए शरीर एक वाहन का कार्य करता है। का जीवन शक्ति है। इसके बिना कोई चेतन जीवन नहीं है। यह केवल अपने प्रभाव के माध्यम से ही मौजूद होता है।

जब शरीर का जन्म होता है तो यह एक अमूर्त व्यक्तित्व या आध्यात्मिक जीव के रूप में अस्तित्व में आता है, जो भौतिक शरीर से पूरी तरह से स्वतंत्र और अलग होता है, परंतु  उसका निवास उसी शरीर में होता है, जिसके कार्यों पर उसे नजर रखनी होती है, जिसे निर्देशन और मार्गदर्शन देना होता है, और वह मृत्यु तक उस शरीर में वास तब करता है। कोई भी बच्चा कभी इस आध्यात्मिक जीव के बगैर पैदा नहीं हुआ, एवं मिस्रवासी जब इसका चित्र बनाते तो वे हमेशा उसे उस शरीर के समान बनाते जिससे वह संबंधित होता था; दूसरे शब्दों में, वे इसे उसका “प्रतिरूप” मानते थे। मिस्री भाषा में इसका नाम का था।

का अपने बा का प्रतिरूप या छवि है।

7. हृदय (अब)

अब हृदय है, जो विवेक के समान है। (विपरीत बा = हृदय का प्राण)

होरुस को ”दिल का मालिक” और ”दिल में बसने वाला” और ”दिल का कातिल” कहा जाता है।

8. साहू

साहू को एक अभौतिक शरीर (आध्यात्मिक) के रूप में परिभाषित किया गया है।

प्राचीन मिस्रवासियों ने भौतिक शरीर के फिर से जिंदा होने की कभी अपेक्षा नहीं की; इसके विपरीत, लेख स्पष्ट कहते हैं, कि आत्मा स्वर्ग में है, शरीर धरती में है

मिस्रवासी मानते थे कि मृतक में से किसी प्रकार का शरीर उठता है और दूसरी दुनिया में अपना अस्तित्व जारी रखता है।

भौतिक शरीर के साथ किए जाने वाले संस्कार और अनुष्ठानों द्वारा आत्मारूपी शरीर उठ कर जाने में सक्षम हो पाता है।

दफन के दिन, उचित पूजा और अनुष्ठान की सहायता से भौतिक शरीर के अंदर साहू — अभौतिक (आध्यात्मिक) शरीर —के रूप में जाग्रत होने की शक्ति आ जाती है।

आध्यात्मिक शरीर = स्थायी और अविनाशी होता है।

प्राचीन मिस्री लेख कहते हैं:

मैं पौधों की तरह पनपता/फलताफूलता हूँ
मेरा मांस विकसित होता है।

साहू में तब्दील हो चुके शरीर में आत्मा के साथ जुड़ने तथा संप्रेषण करने की शक्ति होती है। वह नेतेरु (देवी-देवता) की ओर चढ़ सकता है तथा उनके साहुस  में साथ रह सकता है।

साहू को अर्थी के ऊपर को लेटे हुए दर्शाया जाता है—जो आध्यात्मिक शरीर के चिरस्थायी और अक्षय स्वरूप का प्रतीक है।

“साहू” शब्द का मतलब “मुक्त”, “उच्च”, “प्रमुख”, से मिलता जुलता होता है, और इस मामले में लगता है कि इसे एक शरीर के नाम के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जो इसके ऊपर किए गए धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से भौतिक शरीर से मुक्त होता है और शक्ति प्राप्त कर अविनाशी और चिरस्थायी बन जाता है।

इसलिए अंतिम संस्कार और चढ़ावों का महत्व बहुत बढ़ गया, जिसके कारण आध्यात्मिक शरीर, भौतिक शरीर से बाहर निकलता, और अपने भौतिक शरीर के मौत के बाद उसका ‘का’ अपना अस्तित्व आगे कायम रखता था।

मृत शरीर, प्रार्थना और अनुष्ठान की शक्तियों के माध्यम से, साहू के रूप में बदल सकता है—जैसे दो बहनें (इसिस और नेफ्थिस) ओसिरिस (साहू) के रूप में जाग्रत हो जातीं हैं।

यह मान्यता थी, कि जिस प्रकार भौतिक शरीर ‘का’ के लिए निवास स्थान प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार आध्यात्मिक शरीर आत्मा के लिए निवास स्थान प्रदान करता है,  इसिलिए स्पष्ट रूप से कहा गया है, “आत्माएं अपने साहू में प्रवेश करती हैं।” और आध्यात्मिक शरीर के अंदर स्वर्ग और पृथ्वी हर जगह आने-जाने की शक्ति थी।

9. खत

खत को भौतिक या प्राकृतिक शरीर यानी नश्वर के रूप में परिभाषित किया जाता है।

खतअर्थात—नश्वर (क्षत्)—जोअख—प्रकाशवान, अविनाशी, काविलोमहै।

खत का क्षय होता है, लेकिन ममी बनाए गए शरीर को भी खत कह सकते हैं। ऊपर, नौ घटकों को उनके दिव्य उद्गम से अवरोही क्रम में दिखाया गया है।

पुनर्जन्म के लिए फिर से लौटने से पहले, आत्मा पृथ्वी से चल कर विभिन्न स्तरों के माध्यम से ऊपर की तरफ बढ़ती है, और इस प्रक्रिया में अलग-अलग ”आवरणों” को हटाते हुए, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से गुजर कर अपने योग्यतम बिंदु तक पहुँचती है।

 

[इसका एक अंश: मिस्र का ब्रह्मांड विज्ञान: सजीव ब्रह्मांड , तीसरा संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]