मिस्र के जहाजों और गहरे समुद्र

मिस्र के जहाजों और गहरे समुद्र

1. सामान्य

प्राचीन मिस्र और अन्य सूदूर देशों के बीच लोगों, खनिजों तथा सामान का आवागमन सामान्य सोच से कहीं अधिक व्यापक और आम था। ये समुद्र बाधाएं नहीं, अपितु सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के राजमार्ग थे। जलमार्ग से यात्रा करना, जान और माल दोनों के लिए यात्रा का सबसे सस्ता, अच्छा और सुरक्षित तरीका था (और है)। बड़े और विशाल सामानों के लिए पानी की यात्रा, थलमार्ग की यात्रा की संपूरक है।

प्राचीन मिस्रवासियों के पास ढेर सारे बेहतरीन गुणवत्ता वाले जहाज़ों के रूप में खुले समुद्र में यात्रा करने के साधन मौजूद थे। वे खुले समुद्र की यात्रा करने का भौगोलिक ज्ञान भी रखते थे। सबूत बताते हैं कि उनके ज्ञान और साधनों ने उन्हें धरती के सबसे दूर-दराज़ के देशों तक पहुँचने में सक्षम बनाया। आने वाले पृष्ठों में उच्च गुणवत्ता वाली मिस्री जहाज़ों और खुले समुद्र की यात्राओं के बारे में प्राचीन मिस्री ज्ञान का विवरण दिया जा रहा है।

इससे पहले हमने सितारों के साथ ही धरती की सतह (पानी सहित) के बारे में प्राचीन मिस्री ज्ञान को पेश किया था।

 

2. मिस्री जहाज़

प्राचीन मिस्र के पास, समुद्र और ज़मीन से इंसान और सामान के परिवहन का ज्ञान, साधन, सामग्री और अनुभव था। जब 1970 के दशक में खुफू (चेओप्स) की (4500 वर्ष पुरानी) नाव, गिज़ा में महान पिरामिड के बगल में पायी गयी, तो प्राचीन मिस्री जहाजों की गुणवत्ता की ज़बर्दस्त सराहना की गई। महान पिरामिड के बगल वाले संग्रहालय में रखी यह नाव, कोलंबस की सांता मारिया या वाइकिंग्स की मेफ्लॉवर जैसे जहाजों की तुलना में श्रेष्ठ और योग्य है। भौतिक साक्ष्यों से स्पष्ट है कि मिस्रवासियों के पास खुले समुद्रों में यात्रा करने का साधन मौजूद था। खुफू के जहाज़ से बड़े जहाजों के बारे में आगे वर्णन किया जाएगा।

[खुफू की नाव]

खुफू की नाव आज तक के पाए गए सबसे बड़े प्राचीन जहाजों में से एक है। यूरोप में पाई गई सबसे लंबी वाइकिंग नौका लगभग 98.5 फुट (30 मीटर) की है, जबकि खुफू की नाव 142.5 फीट (43.4 मीटर) लंबी है। यह लगभग 19.4 फुट (5.9 मीटर) चौड़ा और 5.75 फुट (1.75 मीटर) गहरा है और 40 टन से अधिक विस्थापन क्षमता वाला है। जहाज़ के अगले हिस्से को पेपिरस-बंडल के आकार में बनाया गया है, जो लगभग 20 फीट (6 मीटर) लंबा है। इसकी पूँछ 23 फीट (7 मीटर) तक उठती है। इसके पतवार में दो विशाल चप्पू होते हैं। नाव के डेक पर कई केबिन हैं। इस बात के कुछ प्रमाण हैं कि खुफू की नाव का उपयोग वास्तव में पानी में हुआ था। रस्सियों और लकड़ी के बीच घर्षण की वजह से बने निशानों को अब भी कई जगह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

नाव लकड़ी के बहुत से टुकड़ों से मिल कर बनता है, जिन्हें रस्सियों से आपस में जोड़ जाता है। रस्सियाँ गीली होने पर सिकुड़ती हैं, जबकि लकड़ी गीली होने पर फैलती है। इस तरह सिकुड़ने और फैलने के कारण ये बंधन इतने मज़बूत और सुरक्षित हो जाते हैं, कि किसी धातु के कील की ज़रूरत नहीं होती। नाव निर्माण की इस पद्धति से प्राचीन मिस्रवासी अपने नाव के टुकड़ों को अलग-अलग करके अपने साथ लेकर ज़मीन पर चल सकते थे और जब वे किसी सुरक्षित जलमार्ग के पास पहुँचते तो फिर से उस नाव का उपयोग कर लेते थे। इस सरल निर्माण तकनीक के कारण प्राचीन मिस्रवासी ज़मीन के बेहद भीतरी इलाकों तक की यात्रा कर पाते थे। प्राचीन मिस्र के हर दौर के पेपिरस में मौजूद ढेरों विवरण इस पद्धति की पुष्टि करते हैं।

प्राचीन मिस्रवासी अपने जहाज़ निर्माण के लिए समूचे भूमध्यसागरीय बेसिन में प्रसिद्ध थे, जबकि नाव और बड़ी-बड़ी वस्तुओं को बनाने वाली लकड़ी मिस्र में उपलब्ध नहीं थी। जैसा कि फिनीशिया से आयात किए गए लकड़ी की विशाल मात्रा से स्पष्ट है, कि प्राचीन मिस्रवासियों के पास एक बड़ा बेड़ा था। आंशिक ही सही लेकिन लकड़ी की आपूर्ति की आवश्यकता बताती है, कि पुराने साम्राज्य के आरंभ (2575 ई.पू.) से ही मिस्रवासियों का फिनीशियनों के साथ स्थाई समझौता—एक प्रकार का राजसंरक्षण—था।

मिस्रवासियों ने अलग-अलग ज़रूरतों, भौगोलिक स्थितियों और जलवायु के अनुकूल यात्रियों और माल दोनों के परिवहन के लिए बिल्कुल व्यावहारिक नावों का निर्माण किया।  मिस्री जहाज़ काफ़ी प्राचीन काल से ही नील नदी और खुले समुद्र की यात्राएं किया करते थे। जहाज़ काफ़ी अलग-अलग आकार के हुआ करते थे। उनमें से कुछ बहुत बड़े थे। ड्योडोरस ने सिसोत्रिस के शासनकाल के दौरान देवदार से बनाए गए एक जहाज़ का उल्लेख किया है, जिसका माप 450 फीट (140 मीटर) था। 5,000 साल से भी पहले से सभी प्रकार के वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों की जानकारी है, जो ब्रिटेन, आयरलैंड और यूरोप के उत्तरी तटों पर सामानों को लाते ले जाते थे। यह पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में फिनीशियनों के नाविक बनने से बहुत पहले की बात है।

[पुंत की यात्रा पर रानी हत्शेपसुत की पाल नौका।]

बहुत पहले, बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण किया गया था। यहां तक कि पुराने साम्राज्य (2575-2150 ई.पू.) के दौर में, बड़े-बड़े आकार वाली नौकाओं का निर्माण किया गया, इसलिए हम बबूल की लकड़ी से बने 60 हाथ लंबे और 30 हाथ चौड़े … यानी लगभग 100 फीट (30.5 मीटर) लंबे और 50 फीट (15.25 मीटर) चौड़े, विशाल जहाज़ के बारे में सुन पाते हैं, और इस विशाल आकार के नाव को 17 दिनों में बना दिया गया था।

[मिन्या के ऊपर, कोम अहमार के एक मक़बरे में, दो मस्तूलों वाली एक विशाल नाव तथा ढेर सारे खेवैये।]

पुराने साम्राज्य के चित्रों में कई प्रकार की नौकाओं को दिखाया गया है, जैसे कि चौकोर नौकाएं, पृष्ठभाग वाली नौकाएं, कर्षण नौकाएं इत्यादि। प्रत्येक प्रकार के जहाज़ अलग-अलग कामों और परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं। बंदरगाहों के संचालन में कई प्रकार की नौकाओं का उपयोग किया जाता था, जैसे कि कैनोपस (पूर्व-अलेक्जेंड्रिया) के बंदरगाह में होता था। माल ढुलाई वाले जहाज़ के अलावा, छोटी नावें भी थीं जिनका उपयोग छोटी-मोटी चीज़ों को ढोने में होता था।

कुछ मालवाहक बहुत बड़े होते थे, जिनका इस्तेमाल अनाजों, पत्थरों, ईंटों और यहां तक कि उन भीमकाय स्तंभों के लिए भी किया जाता था, जिन्हें आसवान के खदानों में एक ही पाषाण खंड से तराशा जाता और फिर नदी के रास्ते लक्सौर या अन्य जगहों पर ले जाया जाता था।

लगभग सभी नौकाओं को नौकायन और नौचालन दोनों के अनुकूल बनाया गया था। जब विपरीत हवाओं के कारण या शांत नौवहन नहरों गुज़रते समय नौकायन असंभव हो जाता था—तब नाविक छोटी नौकाओं और रस्सों की मदद से कर्षण तकनीक के सहारे यात्रा करते थे। इसके अलावा, बड़े माल की ढुलाई करने वाले जहाजों को पुरुषों या अन्य जहाजों की मदद से खींचा जाता था, क्योंकि वे इतने भारी हो जाते कि अपनेआप नहीं चल पाते थे। इसलिए, पुराने साम्राज्य के दौर तक में, अधिकांश जहाजों में खींचे जाने वाली रस्सी को बांधने के लिए मज़बूत स्तंभ लगाया जाता था। अधिकतर कर्षण नौकाओं में रस्सों के लिए के दोनों छोरों पर छोटे और लंबवत स्तंभ लगे होते थे। उन्हें पुराने साम्राज्य के सभी जहाज़ों की तरह लंबे-लंबे चप्पुओं की सहायता से चलाया जाता था। इस प्रकार के जहाज़ों को खदानों से भीमकाय पाषाणखंडों को लाने के लिए (यानी भारी वजन ले जाने में) इस्तेमाल किया गया था।

[खींचने वाली नाव (लगभग 2400 ईसा पूर्व), ढुलाई के दौरान नाज़ुक चीज़ों को पेटियों में रखा जाता था।]

पुराने साम्राज्य के युग के बाद से, मिस्री जहाजों के पतवार में दो बड़े परिचालन चप्पू लगे होते थे।

समूचे मिस्री इतिहास में अधिकांश नौकाओं को खूब सँवारा जाता था, और अगले भागों को बड़े-बड़े चित्रों से सजाया जाता था। जहाज़ का पिछला हिस्सा कमल के किसी विशाल फूल जैसा दिखता था, पतवार का फलक फूलों के गुलदस्ते जैसा होता था, और शीर्ष पर लगी घुंडी को नेतेर (देवता) के मुखमंडल जैसा बनाया जाता था।

प्राचीन मिस्रवासियों के पास नौसैनिक बेड़ा भी होता था, जिसका आकार अपने-अपने दौर की खुले समुद्र की रक्षा आवश्यकताओं के अनुसार होता था। युद्ध के लिए विशेष नौकाएं बनाई जाती थीं। हेरोडोटस और ड्योडोरस, दोनों ने अरब की खाड़ी में सेसोस्त्रिस के लंबे-लंबे जहाज़ों वाले नौसैनिक बेड़े का वर्णन किया है। उनकी संख्या 400 थी, और इस बात का विश्वास करने का पर्याप्त कारण मौजूद है, कि व्यापार, और युद्धपोतों द्वारा रक्षा के उपाय काफी पहले से, और कम से कम 4,000 साल पहले बारहवें राजवंश के समय में तो मौजूद ही थे।

[मध्य साम्राज्य की एक मिस्री नाव]

मिस्र से बाहर समुद्री डाकुओं से वाणिज्यिक बेड़े की रक्षा में इस्तेमाल होने वाले युद्धपोत का नील वालों से भिन्न होते थे। उनका अगला और पिछला हिस्सा नीचे होता था। हर ओर जहाज़ की पूरी लंबाई के साथ लकड़ी की एक ऊँची प्राचीर होती थी। यह दुश्मनों के बौछारों से मल्लाहों की रक्षा करती थी। पतवार का हैंडल एक छिद्र के माध्यम से निचले हिस्से की ओर जाता था।

 

3. मिस्र के मुख्य तटीय बंदरगाह

वाणिज्यिक और नौसेना के जहाजों के संचालन के लिए, अनेकों बंदरगाह, थल संकेत, जल संकेत, माल को लादने उतारने की सुविधा, मीठे पानी की आपूर्ति, विश्रामस्थल तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध थीं। बंदरगाहों और नील के आबादी वाले क्षेत्रों के बीच अनेकों सड़कें और आपूर्ति केन्द्र थे।

मिस्री जलमार्ग के रणनीतिक स्थान ने यूरोप, अफ्रीका और एशिया के तत्कालीन तीन सक्रिय महाद्वीपों के बीच व्यापार को आसान बना दिया था। मानव निर्मित नौवहन मार्गों द्वारा कैनोपस (अलेक्जेंड्रिया) में भूमध्य सागर और नील नदी के नौगम्य क्षेत्र के बीच संपर्क संभव हो गया। नील नदी, एक और नौवहन मार्ग के ज़रिए स्वेज की खाड़ी के उत्तरी सिरे से जुड़ती थी, जिससे लाल सागर, अफ्रीका, भारत और सुदूर पूर्व तक पहुँचना आसान हो गया।

नौगम्य नील नदी के किनारों पर जगह-जगह मौजूद बंदरगाहों के अलावा, लाल सागर और भूमध्य सागर दोनों ओर के मिस्री तटों पर महत्वपूर्ण बंदरगाह थे।

 

[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ] 

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