पवित्र “अनुपात”

पवित्र “अनुपात”

 

प्राचीन मिस्रवासी, पाई और फाई जैसी गूढ़ संख्यायों के बारे में जानते थे। उन्होंने अपने ज्ञान को अपनी इमारतों और कलाकृतियों के समानुपातिक तालमेल में प्रदर्शित किया।

1. स्वर्णिम अनुपात (संख्यात्मक रूप से = 1.618), पश्चिमी विद्वानों ने हाल ही में—यूनानी वर्णमाला के अक्षर φ (फाई)—इसका मनमाना प्रतीक निर्धारित किया है, परंतु यूनानियों से बहुत पहले से इसे जाना और इस्तेमाल किया जाता था। और इससे भी बदतर बात यह है कि इस बात का कोई सूबूत नहीं है कि यूनानियों को इसके बारे में पता भी था!

सच्चाई का तक़ाज़ा यह है कि इस अनुपात के लिए प्राचीन मिस्री शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, अर्थात् इसे नेब (सुनहरा) अनुपात कहा जाना चाहिए। नेब का अर्थ स्वर्णिम या दिव्य होता है। पश्चिमी लेखों में भी इस अनुपात को स्वर्णिम और दैवीय (उन्नीसवीं सदी के बाद से) के रूप में जाना जाता है।

नेब (स्वर्णिम) अनुपात को योग श्रृंखला से गणितीय रूप से प्राप्त किया जा सकता है, प्राचीन मिस्रियों ने कम से कम 4,500 साल पहले इस बारे में अपने ज्ञान को प्रकट कर दिया था। जैसे-जैसे योग श्रृंखला आगे बढ़ती जाती है (2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, …),  लगातार संख्याओं के बीच का अनुपात नेब (स्वर्णिम) अनुपात की ओर अग्रसर होता है। 55:34, 89:55, 144:89, … आदि सभी अनुपातों का ‘‘मान’’ एकसमान 1.618 है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, प्राचीन मिस्री मंदिरों और तीर्थों को योग श्रृंखला की क्रमिक संख्याओं —भवन योजना के अक्ष के साथ महत्वपूर्ण बिंदु—के अनुसार विभाजित किया गया था।

नेब (स्वर्णिम) अनुपात को ग्राफिकल रूप में और भी कई तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, ये सभी समूचे राजवंशीय इतिहास के मिस्री भवनों में बहुत आम थे।  (विभिन्न तरीकों के बारे में और अधिक जानकारी के लिए मुस्तफ़ा ग़दाला द्वारा लिखित पुस्तक द एनसियंट इजिप्शियन मेटाफिज़िकल आर्किटेक्चर देखें।)

2. सर्कल इंडेक्स (वृत्त सूचकांक) वृत्त का कार्यात्मक सूचकांक होता है। यह वृत्त की परिधि और व्यास के बीच का अनुपात है। पश्चिमी पंडितों ने इसे यूनानी अक्षर पाई से निरूपित किया और इसका मान 3.1415927 निर्धारित किया।

वृत्त तथा अन्य वक्रों तथा उनके गुणों के बारे में मिस्रवासियों का ज्ञान उनके सबसे पुराने बचे अभिलेखों के काल से ही दिखने लगता है। तीसरे राजवंश (2630 ई.पू.) के एक अभिलेख में, सक्कारा के, एक छत के वक्र का निर्धारण निर्देशांक प्रणाली की सहायता से दर्शाया गया है, (यहां प्रदर्शित)। इससे पता चलता है कि वृत्त के बारे में उनका ज्ञान इतना उच्च स्तर का था कि वे लंबवत वक्र के साथ निर्देशांक की गणना करने में सक्षम थे। तदनुसार, शिल्पी अपने द्वारा बनाए जाने वाले वक्रों में सटीक पैमाने का पालन करते थे।

मिस्रियों ने अपनी राजधानियों का निर्माण, 6, 8, 11, और 13-तरफ़ा बहुभुजों के अलावा, नौ तत्वों और कभी-कभी सात तत्वों से किया, क्योंकि वे वृत्त के गुणों से परिचित थे और लंब निर्देशांक तथा अन्य ज्यामितीय आकृतियों के साथ उसके संबंधों को जानते थे।

आर्किमिडीज के जन्म के कम से कम 2,000 साल पहले से मिस्र में इसके उपयोग स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं।

यहां चित्रित और वर्णित विशिष्ट प्राचीन मिस्री दरवाजे के नक़्शे में दोनों पवित्र अनुपातों (पाई और फाई) को समाविष्ट किया गया था।

1. लंबवत सतह में संपूर्ण रूपरेखा 1:2 अनुपात की यानी दोहरे वर्ग वाली है। [H = 2B]

2. आरंभिक चौड़ाई अर्धवृत्त के भीतर उत्कीर्ण एक वर्ग पर आधारित है, जो पाँच के वर्गमूल वाले आयत का अनुपात प्राप्त करने का प्राचीन मिस्र का अपना विशिष्ट तरीका है। इस प्रकार, खुलने वाली चौड़ाई या दरवाज़े के चौखट की मोटाई 0.618 हुई।

3. द्वार की ऊँचाई (H) = 3.1415 = पाई

 

[इसका एक अंश: इसिस :प्राचीन मिस्री संस्कृति का रहस्योद्घाटन- द्वितीय संस्करण द्वारा लिखित मुस्तफ़ा ग़दाला (Moustafa Gadalla) ]